वैदिक संध्या : द्विकालीय या त्रिकालीय? | vaidika saṃdhyā : dvikālīya yā trikālīya?


लेखक - यशपाल आर्य

आर्ष मतानुसार प्रतिदिन संध्या दो बार करनी चाहिए या तीन बार, इस विषय में विवाद चलता रहा है। इस विषय में सत्य पक्ष समझने हेतु हम आर्ष प्रमाण देखते हैं, ऋषियों के साक्षात्कृतधर्मा होने उनके प्रमाण स्वीकार करना चाहिए।

सर्वप्रथम हम यजुर्वेदीय संध्या में संध्या का अर्थ देखते हैं-

यहां लिखा है कि प्रातः और सायं के संध्या के काल में ही संध्या करनी चाहिए।

इस पांडुलिपि पर हमने विस्तृत लेख लिखा है, पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें 👉 वैदिक पूजा पद्धति (यजुर्वेदीय संध्या की दुर्लभ पांडुलिपि पर आधारित)

षड्विंश ब्राह्मण ५.५.४ में भी प्रातः व सायं दो ही काल में संध्या करने का विधान है, सायण ने भी यही स्वीकार किया है -



भगवान् मनु भी दो ही काल के संध्या का विधान व फल का वर्णन करते हैं-

मनु० २.१०१,१०२


लौगाक्षि गृह्यसूत्र १.२६ देखें-


तैत्तिरीय आरण्यक का प्रमाण देखें -


अर्थात् जब सूर्य के उदय और अस्त का समय आवे, उसमें नित्य प्रकाशस्वरूप, आदित्य परमेश्वर को उपासना करता हुआ ब्रह्मोपासक मनुष्य ही सम्पूर्ण सुख को प्राप्त होता है ।


पूर्वपक्ष - तैत्तिरीय आरण्यक में त्रिकालीय संध्या का प्रमाण है-

तै. आ. १०.२३

सिद्धान्त पक्ष - आपने तैत्तिरीय आरण्यक का नाम लेकर सायण भाष्य दिखाया है, मूल में नहीं है। सायण भाष्य जहां तक ऋषियों के अनुकूल हो वहीं तक मान्य है, प्रतिकूल होने पर नहीं। हमने ऊपर तैत्तिरीय आरण्यक का प्रमाण दिखाया है, उसमें द्विकालीय संध्या ही स्वीकार किया गया है।


पूर्वपक्ष - महाभारत में दुर्वासा ऋषि मध्यकालीन संध्या कर रहे हैं-

वनपर्व अ. २६३, श्लो. ६

सिद्धान्त पक्ष - यहां एकाग्रचित्त होकर परमात्मा के ध्यान करने की बात आई है न कि संध्या करने की। हर संध्या में परमात्मा का ध्यान होता है, लेकिन हर ध्यान संध्या नहीं होता। हमने इस श्लोक को BORI CE में देखा तो हमें प्राप्त नहीं हुआ अर्थात् यह बाद में मिलाया हुआ है।


पूर्वपक्ष - रामायण २.३२.३ में यह वर्णन है कि सुयज्ञ ने दोपहर की संध्या करके  लक्ष्मण के साथ भगवान् श्रीराम के महल में प्रवेश किया।

सिद्धान्त पक्ष - मूल में दोपहर की संध्या का शब्द नहीं है केवल संध्या का वर्णन है, iit kanpur ने भी यहां अपने अनुवाद में दोपहर की संध्या स्वीकार नहीं किया है-

पश्चिमोत्तर व बंगाल पाठ में यहां संध्या का वर्णन ही नहीं है, देखें श्लोक-

पश्चिमोत्तर २/३५/३


बंगाल २/३२/३

आशा करते हैं आपको कुछ नई जानकारी मिली होगी, इस लेख को अन्यों को भेजें ताकि अन्य लोग भी सत्य से परिचित हो सकें। इसी के साथ हम अपनी लेखनी को विराम देते हैं...

।।ओ३म् शम्।।


संदर्भित एवं सहायक ग्रंथ

  • यजुर्वेदीय संध्या (पांडुलिपि)
  • षड्विंश ब्राह्मण
  • मनुस्मृति
  • लौगाक्षि गृह्यसूत्र
  • रामायण (गीता प्रेस, iit kanpur, पश्चिमोत्तर संस्करण, बंगाल संस्करण)
  • महाभारत

Comments

  1. Arya ji oldest proof of vedas pe ek post

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

रामायण में अश्लीलता की समीक्षा

कौन कहता है रामायण में मांसाहार है?

क्या भगवान राम के जन्म से पूर्व महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण लिखा