लेखक - यशपाल आर्य
(इस विषय मे प्रमाण खोजने में प्रिय मित्र राज आर्य जी ने बहुत सहायता की है, एतदर्थ हम उनका हार्दिक धन्यवाद व आभार व्यक्त करते हैं)
भगवान् पतञ्जलि के अनुसार ऋग्वेद की कुल २१ शाखाएं थीं, यजुर्वेद की १०१, सामवेद की १००० और अथर्ववेद की ९ शाखाएं थीं। इस प्रकार चारों वेदों की ११३१ शाखाएं होती हैं।
महाभाष्य १.१.१
यहां ऋग्वेद के लिए बह्वृच का सामान्य प्रयोग किया गया है किन्तु इसके साथ ही एक ऋग्वेदीय शाखा विशेष की भी बह्वृच संज्ञा थी। सम्प्रति यह अनुपलब्ध है किन्तु इतिहास में हमें इसके प्रमाण प्राप्त होते हैं, जिन्हें हम यहाँ उद्धृत करते हैं-
कौषीतकि ब्राह्मण १६.९
अगर बह्वृच ऋग्वेद का केवल सामान्य नाम मात्र ही होता तो यहाँ इसे पैङ्गय व कौषीतकि से भिन्न नहीं कहा जाता क्योंकि पैङ्गय व कौषीतकि दोनों ही ऋग्वेद की शाखाएं हैं।
शतपथ ब्राह्मण से भी इस शाखा का अस्तित्व प्रमाणित होता है-
श. ब्रा. ११.५.१.१०
यहाँ कहा है कि बह्वृच के अनुसार उर्वशी पुरुरवा के आलंकारिक संवाद वाले सूक्त में १५ ऋचाएं हैं किन्तु ऋग्वेद की शाकल संहिता में १८ ऋचाएं हैं। अतः यहाँ यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि बह्वृच नाम से कोई मंत्र संहिता भी विद्यमान थी। आपस्तम्ब श्रौत सूत्र में बह्वृच के नाम से मंत्र उद्धृत है, पंडित भगवद्दत जी के अनुसार वह मंत्र सम्प्रति उपलब्ध ऋग्वेदीय शाखाओं में प्राप्त नहीं होता, अतः यहाँ भी सिद्ध होता है कि बह्वृच कोई शाखा विशेष थी।
महाभारत में हमें साम्ब नामक ब्राह्मण के विषय में जानकारी प्राप्त होती है, जो अपने चरण में वृद्ध व बह्वृच शाखा का विद्वान् था।
महाभारत आश्रमवासिक पर्व १५/११ (BORI Cri. ed.)
यहां संकेत मिलता है कि बह्वृच कोई चरण भी था। इसकी पुष्टि हेतु हम एक और प्रमाण देते हैं। आचार्य कुमारिल भट्ट लिखते हैं-
तंत्रवार्तिक १.३.११
जब शाखा है तो उससे संबंधित ब्राह्मण ग्रन्थ आदि भी होने चाहिए। अब हम इस शाखा से संबंधित ब्राह्मण ग्रन्थ होने का प्रमाण देते हैं। शबर स्वामी मीमांसा पर भाष्य करते हुए बह्वृच ब्राह्मण का पाठ उद्धृत करते हैं-
मीमांसा शबर भाष्य २.४.१
मीमांसा शबर भाष्य ६.३.१
“इतस्थोऽहं प्रपश्यामि०” (वा. रा. गी. प्रे. किष्कि. का. ५८/३१) पर टीका करते हुए तिलक टीकाकार भी इस ब्राह्मण का उल्लेख करते हैं-
इस शाखा से संबंधित गृह्यसूत्र का भी संकेत प्राप्त होता है-
मनुस्मृति २.२९ मेधातिथि भाष्य
इत्सिंग की भारत यात्रा में हमें बह्वृच सूत्र का प्रमाण प्राप्त होता है -
हमें इस चरण से संबंधित एक मुहर भी प्राप्त होती है -
Vasudeva Sharan Agrawala, A Selection, Sec. 5, Ch. 49, Pg. no. 641
(Source - nastikwadkhandan.blogspot.com)
प्रस्तुत मोहर में ऋग्वेद चारण का नाम गुप्त कालीन ब्राह्मी लिपि में -
"बह्वृचचरणं" लिखा है। इस मुहर में एक गुरू है जो जटाजूट धारी है तथा साथ में उसके दो शिष्य हैं। ये वृक्षों के नीचे खडे हैं।
इसका रेखा चित्र मोतीचंद्र जी की पुस्तक "काशी का इतिहास (वैदिक काल से अर्वाचीन युग तक का राजनैतिक - सांस्कृतिक सर्वेक्षण) के प्रथम संस्करण के कवर पृष्ठ पर श्री जगन्नाथ अहिवासी द्वारा बनाया गया था -
(Source - nastikwadkhandan.blogspot.com)
त्रिपिटक की टीका में भी हमें बह्वृच का नामोल्लेख प्राप्त होता है
बह्वृच ब्राह्मण का नामोल्लेख मूल त्रिपिटक में भी है-
हमें Corpus Inscriptionum Indicarum में भी इस शाखा के होने का पर्याप्त प्रमाण प्राप्त होता है।
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।।ओ३म् शम्।।
संदर्भित एवं सहायक ग्रंथ
- वैदिक वाङ्मय का इतिहास प्रथम भाग
- महाभाष्य
- कौषीतकि ब्राह्मण
- मीमांसा दर्शन शबर स्वामी भाष्य सहित
- तंत्रवार्तिक
- इत्सिंग की भारत यात्रा
- आपस्तम्ब श्रौत सूत्र
- शतपथ ब्राह्मण
- महाभारत Cri. ed
- RĀMĀYAṆA OF VĀLMĪKI WITH THE COMMENTARIES TILAKA OF RĀMA, RĀMĀYAṆAŚIROMAṆI OF ŚIVASAHĀYA AND BHŪṢAṆA OF GOVINDARĀJA (Shastri Shrinivasa Katti Mudholakara)
- मनुस्मृति मेधातिथि भाष्य
- त्रिपिटक
- Corpus Inscriptionum Indicarum
Par mahrishi dayanand ne to 1127 shaakha maani hain
ReplyDeleteAcharya ji rig Veda ki sabse oldest hone ke praman dijiye
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