सत्यार्थ प्रकाशान्तर्गत वंशावली में त्रुटि विषयक भ्रांति का निवारण

                               ।। ओ३म् ।।


                                 लेखक - राज आर्य

नमस्ते जी

इस लेख में आपको न केवल एक समीक्षा प्राप्त होगी, बल्कि आज आपको हम मुहम्मद घोरी और महमूद गजनवी का काफी इतिहास भी जनावेंगे, क्योंकि जो जैसा है उसे वैसा ही बतलाना सत्य कहलाता है। इस संशय की निवृति तभी हो सकती है जब हम इतिहास सागर में गंभीरता से उतरेंगे और सत्य को जानने की ओर उन्मुख होंगे। अस्तु!

पूर्वपक्ष के आक्षेप क्या हैं इसे जानने में यह दो चित्र संलग्न हैं, इसे देखें-





समीक्षक - [पाठकगणों! पूर्वपक्ष के फर्जी दावों का समीचीन समीक्षा करना हमारा मुख्योद्देश्य है, इसी हेतु से हमने इनके पहचान आदि जानकारियों को छिपा दिया है । लेख में यथास्थान हम इन्हें "गुडलक मिश्र" से संबोधित करेंगे ]
तो जैसे कि यहां पूर्वपक्षी महोदय सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ में भारी भरकम गलती साबित कर रहे हैं। इनके इन भ्रांतियों का मूलोच्छेद आरंभ करते है ।

पाठकवृंद! पूर्वपक्ष महाशय की सत्यार्थ प्रकाश में महर्षि दयानंद सरस्वती की गणितीय त्रुटियां निकालने के अर्थ/अभियान में लेखनी आरंभ से ही लड़खड़ाती हुई दिख पड़ती है। यहां अत्यंत हास्यास्पद बात देखने को मिली, जिस लेख को सभी समूहों में फैला पूर्वपक्ष महोदय आर्य समाजियों को भरमाने के मंसूबे पाल रहे हैं। इनके इस लेख का क्या ही कहना, यहां कौनसे गणित से १२४९ + ७४५ = २००३ जोड़ किया है, हम प्रश्न करते हैं। भला त्रुटि निकालने वाले की परीक्षा ना हो यह कैसे संभव है, हम पूछना चाहते हैं ऐसा दिव्य ज्ञान किस इनवर्सिटी से आप लोग प्राप्त करते हैं, कृपया गुडलक मिश्र जी हमे बताने का कष्ट करे, हम आपके उत्तर के इंतजार करेंगे। अब आगे बढ़ते हैं।
सर्वप्रथम कई लोगों के मस्तिष्क में यह सवाल उठ रहा होगा- 
प्रश्न - क्या सुलतान घोरी १२४९ विक्रम संवत् में भारत आया भी होगा? सत्यार्थ प्रकाश की यह बात ठीक है वा इसमें इतिहास संबंधी त्रुटि है?

उत्तर - पाठकों! यह बात सत्य है, लगभग सभी इतिहास की पुस्तकों में यह तारीख एक सा ही लिखा मिलता है कि मोहम्मद घोरी १२४९ विक्रम संवत् में Battle of Tarrain में महाराज पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लेता है। जिसे पूर्वपक्ष महर्षि का मजाक बनाते हुए गलत बता रहा है, यह उसके अज्ञानता का ही प्रमाण है। आज हम प्राचीन "तबकात ई नासिरी" आदि किताबो से प्रमाण प्रस्तुत करेंगे। (महर्षि की इच्छा थी इतिहास पर शोध हो, इस हेतु हम कुछ विस्तृत रूप में घोरी और गजनवी से संबंधित इतिहास लिखेंगे, इससे आगे शोधकर्ताओं को लाभ होगा) 

आगे बढ़ने से पूर्व हम पूर्वपक्ष से सवाल करते हैं - सुल्तान मुहम्मद घोरी के इतिहास पर तबकात ई नासिरी और अन्य प्रमाणिक ग्रंथ क्या हैं? क्या इनका इतिहास एकदम स्पष्ट मतभेद रहित मौजूद है जैसा कि पूर्वपक्ष जानने का दावा कर रहा है या उसके बल पर महर्षि में इतिहास संबंधित त्रुटि दिखा रहा है? 

चलिए उन्हे खोजने दीजिए, उत्तर हम आपको देते हैं-

तबकात ई नासीरी पृ. सं. ४६०-
यहां प्रसंग चल रहा है - ग़जनी के गढ़ से मुहम्मद घोरी भारतीय राजाओं से युद्ध के हेतु आता है और पराजित होकर भाग जाता है, यहां के राजा उसे ज़िंदा भागने देते हैं।

कितने युद्ध हुए इसमें इतिहासकारों में काफी बहस है,
आइन-ए-अकबरी से ज्ञात होता है- ७ भीषण युद्ध के पश्चात् राजा पृथ्वीराज जी मुहम्मद घोरी से हारे थे। तबतक घोरी को ज़िंदा भाग जाने दिया गया।


अब देखें, मुसलमानों के प्रमाणिक इतिहास की किताब फरिश्ता के अनुसार, 587 हिजरी में घोरी पुनः अपनी सेना लेकर आता है -

इस विषय में इतिहास में काफी मतभेद है कितने बार घोरी भारत पर आक्रमण करता है और उसे किस बार सफलता मिली - 


"Pithora" से यहां पृथ्वीराज ग्रहण करे , म्लेच्छो/ विदेशियों को ठीक उच्चारण करना नही आता था -

पृ. सं. ४६६ , तज़ उल मासिर जो कि उसी का समकालीन ग्रंथ है, उसमें लिखा है - मुहम्मद गोरी ने राजा पृथ्वीराज चौहान को इस्लाम स्वीकारने कहा इसके प्रत्युत्तर में युद्ध हुआ। पृथ्वीराज जी उसे हराने के बावजूद हर बार कहते कि तुम अपने territory में रहो और हम अपने। लेकिन गोरी हर बार भारत पर इस्लाम की फतह हेतु आता रहा और सफलता के लिए प्रयत्न करता रहा ।

घोरी छल से पृथ्वीराज और गोविंद राय पर आक्रमण कर सफलता प्राप्त करता है -

पृथ्वीराज के मृत्यु को लेकर अलग अलग मतभेद (मतभेदों का सफर)-



तबकात ई नासिरी का कहना है - 587 वा 588 हिजरी में राजा पृथ्वीराज चौहान को सुल्तान घोरी कैद कर लेता है अर्थात् तुर्क सल्तनत भारत में स्थापित हुई या भारत के कई राज्य इसके कब्जे में आने लगे -

Ain i akbari अनुसार घोरी का 588 हिजरी में आगमन हुआ -

अब नीचे चित्र में hijri to Gregorian year में देख सकते हैं-

यह निकलकर आ रहा है  1192 AD (अर्थात् वही विक्रम संवत् 1249) यानि कि ऋषि जी ने ठीक ही लिखा है, पूर्वपक्ष यहां स्वयं गलत है। अब चूंकि महर्षि दयानंद ने मोहनचंद्रिका की वंशावली में यह देखा कि अंतिम राजा यशपाल है (~ हिंदू पुस्तको को छोड़कर मुसलमानो के किताबों में इनको "जयपाल" लिखा गया है) और महर्षि स्वयं ये चाहते थे कि इसपर आगे हम आर्यगण शोध से पता करें कि ठीक ठीक इतिहास क्या है ? इस हेतु उन्हें जो भी तत्कालीन जानकारी प्राप्त हुई उन्होंने वही सत्यार्थ प्रकाश में लिखा। आगे के इतिहास क्रम को समझें -

आगे, घोरी और ऐबक का बनारस पर हमला, जयचंद आदि को पराजित करते हुए भारत के अनेक राज्य जीतना-

अन्य इतिहास की किताबों की टिप्पणियां भी पढ़ें-

इतिहास किताबो में भेद प्राप्ति -

यहा भी स्पष्टता नहीं, अनेक मत भेद -

[समीक्षक टिप्पणी - स्वामी दयानंद की त्रुटि निकालने से पूर्व एक बार तुम्हारे पक्ष में प्रमाणिक एकरूप सत्य इतिहास है भी वा नहीं इससे भी जांच कर लेते, फिर आक्षेप करने निकलते तो हमारे द्वारा आज तुम्हारा खंडन न हुआ होता]
आगे, इनके क्रूरतापूर्ण इतिहास का उदाहरण आता है। बनारस में जयचंद को हराकर सारे खजाने जो हिंदू लोग मंदिरों में दान करते इखट्टा रखते थे उन मंदिरों को तोड़ते हुए सारा धन मुसलमानो द्वारा कब्जे में लिया गया -


बाद में घोरी गजनी जाकर पुनः भारत आता है और खूब रक्तपात करता है अपने इस्लाम को फैलाने के लिए -



अन्य इतिहास की किताबों में , 592 हिजरी में , कुतुबुद्दीन ऐबक तथा मुहम्मद घोरी का जो इतिहास लिखा है इसे जानना उचित है -

"राजकुमारी कोरुमदेवी जी" ने गोरी और ऐबक को बुरी तरह हराया लेकिन अफ़सोस की बात है किसी हिंदू राजा वा रानी ने इन्हे मौत के घाट नही उतारा और बार बार छोड़ दिया !


फरिश्ता के अनुसार बाद में अजमेर भी जीत लिया गया और २०,००० के करीब पुरुष और स्त्रियों को बंदी बनाकर वे दिल्ली ले जाए गए -

आगे ५९९ हिजरी में कालिंजर के राजा को हराने पर कुतुबुद्दीन उससे भारी मात्रा में धन, घोड़े, और हाथी आदि गुलामी tax रूप में मांगता है , और उसे बक्शने के बजाए मार देता है । ऐसा यह पहली बार नही हुआ, इसी पुस्तक के पढ़ने से पता लगता है जितने भी बार इसप्रकार के agreement किए गए थे , हर बार धोका करके मुसलमानों ने इसी ढंग का व्यवहार किया है । आगे आप पढ़ सकते है, ५० हजार के करीब पुरुषो और स्त्रियों को मुसलमानो ने बंदी बना लिया और हजारों की संख्या में मंदिर आदि तोड़कर उसे मस्जिद में कन्वर्ट कर डाला !

*** अब देखो , घोरी के मृत्यु पर भारी भरकम मतभेद ! बताओ त्रुटि रहित सत्य इतिहास इनमे से किसे मानते हो और क्यों ??

६०९ हिजरी में घोरी का देहांत हुआ (अर्थात् 1212 AD) -

यहां तबकात ई नासिरी बता रहा है 602 हिजरी में घोरी का देहांत हुआ -


यहां भी इतिहासकारों में भेद मिलता है - गोरी के देहांत को 1206 AD बता रहे है -

*** [अभी समाप्त नही हुआ, मतभेद का सिलसिला काफी लंबा है ]

यहां इतिहासकार बता रहे है , घोरी को राजा पृथ्वीराज ने अपने शब्दभेदी बाण से मार गिराया -

Ain i akbari भी यही इतिहास बताता है ,महाराजा पृथ्वीराज ने शब्दभेदी बाण से मुहम्मद घोरी को मार गिराया था

**** अब किन्ही को सवाल यह भी उठ सकता है - आखिर कौन थे यशपाल ? क्या उन्हे भी कैद किया गया था ??

Note - पाठकगणों ! राजा यशपाल को ही प्राकृत में ‘जसपाल’ कहा जाता था , और उच्चारण भेद से फारसियो और मुसलमानों ने उन्हें ही ‘जयपाल’ लिखा । 

Ain i akbari में आई वंशावली , यहां राजा जयपाल (~यशपाल) को राजा पृथ्वीराज से पूर्व बताया गया है -



यशपाल या जयपाल को समझना है तो इसके लिए आपको जानना होगा महमूद गजनी के इतिहास को -

तबकात ई नासीरि पृ. सं. ७५ से -

गजनी मुहर्रम की रात्रि 361 हिजरी अर्थात् 971 AD को उत्पन्न हुआ था -

यहां गजनवी जन्म से संबंधित एक गप्प सभी मुसलमान इतिहासकारों ने लिखा है , की जब यह पैदा हुआ था उसी दिन सिंध प्रांत के बड़े मंदिर की मूर्ति खंडित हो गई थी 
(* समीक्षा - भला एक जड़ पत्थर को किसीके जन्म से कैसा भय ?? यदि बुतपरस्ती पाखंड है तो बुत भंजको में कौनसा पाखंड नहीं है ?? वे कौनसा दूध के धुले है ?? )

"तारीख़ ई मीरात ई जहाँ नूमा" से प्राप्त इतिहास में हमे महमूद के दो आक्रमण की जानकारी मिलती है - जिसमे ३९१ हिजरी यानी 1001 AD को भारत में आज स्थित पेशावर इलाके पर मात्र 10,000 घुड़सवारों सहित पहुंच वह भारत के राजा जयपाल तथा 15 भाईयो और उनके पुत्रो को बंदी बना लेता है और पंजाब के बठिंडा के किले में उन सबको बंद कर देता है -

जयपाल (हिंद के बादशाह ) से महमूद २ लाख स्वर्ण दिनार , १५० हाथी , और एक बेश कीमती माला (जो की २ लाख स्वर्ण दिनारो के बराबर मूल्य रखती थी) गुलामी कर tax मांगता है । इसके पश्चात जयपाल जी अपराजय से निराश हो अपना मुंडन करवा अग्नि स्नान कर लेते है । (इसे उस समय का कोई हिंदुओ का परंपरा बताया जा रहा है, जो की पाखंड में हम मानते है)

तबकात ई नासिरि स्पष्ट साक्षी देती है महमूद ने अपने हिंसक मजहब को फैलाने भारत में आक्रमण किया था ( ४१७ हिजरी अर्थात् 1027 AD) और उसने अकेले ने ही क्रूरता से हजारों की संख्या में हिंदू देवी - देवताओं के मंदिरों को तोड़कर मस्जिदों में तब्दील कर दिया तथा अनेकानेक नगरों को कब्जा किया -

महमूद गजनवी स्वर्ण का भूखा था, इससे बड़ा लुटेरा भारतीय इतिहास में दूजा खोज पाना कठिन है, इसे कही से जानकारी प्राप्त हुई की हिन्दूओ की सारी संपत्ति मंदिरों में रखी गई है। तभी महमूद ने युक्ति सूझी भारत के सबसे धनवान सोमनाथ मंदिर को लूटने की ! हिन्दू इस काल में पौराणिक कथाओं के चंगुल में फसे हुए थे, पंडे पुजारियों की यही मान्यता रही की चिंता की बात नही महमूद आएगा , हमारे महादेव प्रकट होंगे, त्रिनेत्र खुलेगा, चमत्कार होगा , म्लेच्छ लोग भस्म हो जायेंगे । भला महाकाल को किस्से भय ? लेकिन हुआ पौराणिक पाखंडियों के विरुद्ध, महमूद ने सोमनाथ के धन को भी लुटा, लाखो हिंदुओ को मौत के घाट उतार दिया । कोई महादेव प्रकट नही हुए , कोई अवतार नही आया । जिसकी आशा में हिंदू बैठा था, जिसे पुराणों में हिंदुओ ने पढ़ रखा था। सोमनाथ में स्थित शिवलिंग जो की राजाओं वा शिल्पियों के विज्ञान से बिना किसी सहारे आकाश में उठा रहता था खड़ी थी , उसे महमूद ने टुकड़े टुकड़े कर दिए । उन प्रतिमाओं के खंडों में से एक खंड को गजनी अपने यहां के मस्जिद के प्रवेश द्वार में लगवाता है (ताकि हिंदुओ का अपमान हो, उनके देवता की पवित्र माने जाने वाले प्रतिमा पर म्लेच्छ गण अपने पैर से छू प्रवेश करेंगे) 
दूसरा खंड उसने अपने महल के प्रवेश में लगवाया 
तीसरा और चौथा खंड उसने मक्का और मदीना में लगवाया । महादेव की प्रतिमा का ऐसा अपमान इतिहास में किसी ने नही किया होगा । ऐसा हिंदुओ के भावनाओ पर आघात महमूद गजनी ने किया । और हिंदू अपने पाखंड के कारण देवताओं की आशा कर रहे थे, केवल हाथ पर हाथ धर देखते रहे, कुछ भी न कर सके । आपने पंडे पुजारियों से सुना होगा आज भी अपनी कायरतापूर्ण कथा सुनाते हुए कहते है - इनके महादेव शिव तो मक्का मदीना में कैद है (तो असली कहानी ये थी, प्रतिमा के खंड वहा कैद है, न की वास्तव के महादेव ) 

आगे,

यहां लेखक पाखंड भरा इतिहास लिखता है । आगे , महमूद के पास २५०० हाथी थे, और ४ हजार तुर्क गुलाम थे (स्त्री एवं पुरुष)

ये काल मतभेद से है -

यहां उपरोक्त प्रमाण , Elliot vol.2 में, महमूद को भारत में प्रवेश 410 हिजरी (1020 AD) में बताया गया है। ये भी बहस का विषय है ।

आगे भी महमूद के कई सारे expedition हुए अब महत्वपूर्ण आक्रमण को पढ़े - मथुरा पर आक्रमण ! इतिहास में लिखा है - मथुरा में भगवान कृष्ण का अद्भुत अद्वितीय सुंदरतम मंदिर हुआ करता था, जो शिलाओ से निर्मित था -


महमूद के काल में वहा हजारों विशाल महल थे, कहा जाता है - हजारों गुणा हजार हजार दिनार भी व्यय किया जावे और हजारों की संख्या में बड़े से बड़ा विश्व का निर्माता कारीगर को इसके बनवाने में नियुक्त किया जाए तो भी २०० वर्ष में भी बनने वाला न था । ऐसा कृष्ण भगवान का मंदिर हुआ करता था मथुरा में । उसमे स्थापित पांच स्वर्ण मूर्तियां थी ५ गज माप की । उनमें से एक के आंखो में लाल Ruby रत्न लगा था जिसका भी मूल्य ५०,००० स्वर्ण दिनारो के तुल्य था। ऐसे ही अन्य भी विशेषताएं पढ़ सकते है । लोग ये ही मान्यता में सो रहे थे महमूद आ रहा है, भगवान श्री कृष्ण अपनी राधिका के संग प्रकट होंगे (जैसे रोज वृंदावन में रास के लिए आते है) ऐसी मान्यता पंडे पुजारियों ने सभी भोले हिंदुओ में स्थापित कर दी थी, कोई कुछ न बोला , कुछ न किया। सभी बहुमूल्य वस्तुओ को महमूद गजनी ने लूटा कोई अवतार नही आया । सारी प्रतिमाओ को खंडित कर डाला, कोई अवतार नही आया । मंदिर को बर्बाद कर दिया, कोई अवतार नही आया । सभी पंडित पुजारियों को मौत के घाट उतार दिया । सत्यार्थ प्रकाश में ऋषि दयानंद लिखते है यदि मूर्ति पूजा और अवतार आदि पाखंड त्यागकर एक ने भी भगवान कृष्ण का अनुकरण कर लिया होता , एक में भी सच्ची कृष्ण भक्ति होती और "कोई श्रीकृष्ण के सदृश होता तो इनके धुर्रे उड़ा देता " 

अब आगे देखें, 421 हिजरी अर्थात् 1030 AD में महमूद गजनवी की मृत्यु हुई -

६१ वर्ष की आयु में गजनवी की मृत्यु हुई -

इसके विषय में coins और inscription लाए गए जिसमे इसे "breaker of idols" या "मूर्ति भंजक" विशेषण मिला, विचार करिए इसने अपने जीवनकाल में कितने ही हिंदुओ के मंदिर और मूर्तियों को बर्बाद किया होगा (हम इसके कृत्य की निंदा करते है) -


पूर्वपक्ष - देखो स्वामी दयानंद का बताए इतिहास में त्रुटि है , विकिपीडिया इनवर्सिटी से हमने ऐसा इतिहास नही पढ़ा । वहा स्पष्ट और मतभेद रहित इतिहास मिलता है । 
समीक्षक पक्ष - विकिपीडिया कोई प्रमाणिक स्रोत नही होता । जो तुम्हे इतना सरल और स्पष्ट इतिहास जो दिखता वह भ्रांतिपूर्ण है तुमने इतिहास की किताबे नही पढ़ी तभी ऐसा कहते हो । घोरी और गजनवि के विषय में इतनी गौण दोष को देखोगे तो समस्त ऑथेंटिक इतिहास की किताबों में मिल रहे मतभेदों पर क्या कह सकोगे ?

अब पूर्वपक्ष यह पूछ सकता है, महर्षि दयानंद ने पृथ्वीराज के स्थान पर जयपाल क्यों लिखा ??

उत्तर - देखो , ऋषि दयानंद ने पूर्व ही मोहनचंद्रिका से सत्य सत्य प्रमाण अनुकूल अपनी बात रखा की ऐसा इतिहास वंशावली अनुसार मिलता है, इतिहास पर शोध करने हारे सभी विद्वान जानते है की चाहे hindu chronicles हो वा मुसलमानी इतिहास की किताबे वा फारसी लेखकों की किताबे आदि , कई प्रकार सभी में इतिहास सम्बन्धी भेद बहुस्थान प्राप्त होते है, एक सा जानकारी नहि मिलता ।  अतः ठीक ठीक एक इतिहास को दृढ़ता से रख पाना अपने में एक चुनौतीपूर्ण कदम होगा , इन सबसे अनभिज्ञ विकिपीडिया इनवर्सिटी से पढ़े आक्षेपकर्ता कहने लगते है इतिहास जैसा विकिपीडिया पर लिखा है वही ठीक है , मैं पूछता हूं क्या कभी आपने देखा है तबकात ए नासिरी, तवाकरत ए फरिश्ता , ऐन ए अकबरी आदि ?? जब देखा ही नहीं तो कहा से मान लिया की इन सभी वंशावली में कोई भेद नहीं ?? क्या आक्रमण का इतिहास इतना सरल है जो एकाक युद्ध से ही भारतीय गुलामी का फैसला हो जाता यदि यही विचार है आपके, तो यह नीरा मूर्खता ही कहलाई जायेगी । इस झंझावत आक्रमण के इतिहास में अनेक राजे महाराजे लड़े और विभिन्न युद्धों आदि का वर्णन अलग अलग इतिहासकारो ने तत्कालिन जानकारियों को अलग अलग ढंग से लिखा । ये आशा करना बेफिजूल होगा की आपको एक ही स्थान पर समस्त नियुक्त राजाओं के नाम आदि मिल जाए , और सरलता से जितने भी युद्ध हुए उनके ठीक ठीक इतिहास प्राप्त हो जाए । इसलिए कहा जाता है , इतिहास अनुमानों और संभावनाओं पर आधारित होता है स्वामी दयानंद इसे अच्छे से भापते थे , देखो दयानंद के शब्द सत्यार्थ प्रकाश ११वे सम्मूलास के अंतिम वाक्य -" इनका विस्तार बहुत इतिहास पुस्तको में लिखा है, इसलिए यहां नही लिखा" 
क्या दयानन्द ने नही कहा था की इसके आगे आप अन्य सभी इतिहास की किताबों को पढ़े और शोध करे ? जब वे चाहते थे की इतिहास में आगे शोध कार्य होवे और उन्होंने ये सबको ज्ञापित कर दिया था मोहनचंद्रिका आदि से प्राप्त वंशावलियां और अन्य इतिहास ग्रंथो का जांच पाठक आगे स्वयं करे , तो दोष दयानंद का नही होगा । क्योंकि उन्हे प्राप्त वंशावली के प्रमाण अनुसार उन्होंने जो लिखा सो ठीक था । इसे न्याय दर्शन की भाषा में संशय कोटि में माना जायेगा , आपने वक्ता वा लेखक के अभिप्राय वा अर्थ न समझकर मूल अर्थ से लोगो को भटकाने का कार्य किया है, क्योंकि ग्रंथ की विवक्षा से यही पता लग रहा है ग्रंथकार इसमें शोध की अपेक्षा करता है , इसे विद्वद गण समझ सकते है, विद्याशून्य कभी नही । 
पाठको के लिए हम निम्न प्रमाण प्रस्तुत करते है , Ain i Akbari, पृष्ठ २९७ , इंद्रप्रस्थ की वंशावली पूर्वोक्त दिया है वही से continue करते है




 (Note - इसमें भी शोध अपेक्षित है, इसके प्रमाणिकता की दावा हम नही करते, आगे इसपर शोध होवे इसलिए दे रहे है )

पाठकगणो ! ज़रा ध्यान देवे, जैसा की लेख में पूर्वपक्ष के लेखनी से जो शब्द लिखे गए है, इसे पढ़कर तो कदापि ये प्रतीत नही होता की ये किसी दयानंद के शिष्य के शब्द है । अतः मैं इसे छद्म आर्य नाम देता रहा हु, यह भाई वास्तव में पौराणिक ही हो सकते है, तभी इस तरह के कटु वचन कहते है । आइए हम आपको ठीक ठीक समाधान सहित लेखक के यथावत वाक्यार्थ का बोध करवाते है जैसा की लेखक पाठको के लिए लिखता है !

मित्रो ! इस विषय में हम दृढमत है की ७४५ वर्ष का आंकड़ा मोहनचंद्रिका की देन है ! क्योंकि १२४९ विक्रमी से जोड़ने पर यह भविष्योपकथन हो जाता है । ऐसी महाभूल ऋषि दयानंद कदापि नहीं कर सकते , अतः पूर्वपक्ष को असत्य हठ और मूर्खता को किनारे रख , ठीक अनुमान करना चाहिए । लेखक का अभिप्राय जानने में निश्चय ही पूर्वपक्ष को महति भ्रांति हुई है । प्रसंगवश वाक्यार्थ ठीक नहीं जान पड़ता , इसलिए जो लेखक का मूल विचार हमे संभावित लगता है वह यही है की ७४५ वर्षो का आंकड़ा यह १२४९ विक्रमी से संबंधित नही है। प्रत्युत वंशावली का हिस्सा है । स्वामी दयानंद ने यह ७४५ वर्ष की गणना को जैसा देखा वही बिना छेड़छाड़ के रख दिया ताकि भविष्य में इसपर शोध कार्य हो सके । 

पूर्वपक्ष महाशय ने जितनी बुद्धि दोष निकालने में व्यय की है, थोड़ी सी बुद्धि एक बार वंशावली में वर्ष जोड़ने में भी लगा ली होती तो सत्य तक पहुंच पाते , लेकिन वे सत्य से कोसो दूर है -


यहां जानने योग्य महत्वपूर्ण बाते -

विक्रम संवत ५७ bce से आरंभ होता है, अभी (२०२३ सन में) ५१२४ कलि संवत चल रहा है ! इसमें विक्रम के २०८० वर्ष घटाने से ३०४४ कलि आता है।


मोहनचंद्रिका की वंशावली में महाराज युधिष्ठिर से राजा विक्रम के राजा बनने तक गणना करने पर वर्ष ३०९० वर्ष आ रहा है ।इसमें यदि राजा युधिष्ठिर के ३६ वर्ष के कार्यकाल को घटा देवे तो कलि संवत आ जाता है जो है  - ३०५४ कलि संवत ...... (यानी १० वर्ष का आधिक्य, अब क्या आप इसे भी दयानन्द की त्रुटि कहेंगे ? वा मोहनचंद्रिका की ? )

आगे वंशावली में विक्रम के ९६ वर्ष को और उसके पश्चात राजा यशपाल तक गणना को करे तो ९६ + १०५१ वर्ष = ११४७ विक्रमी काल आ जाता है ।
सत्यार्थ प्रकाश में ऋषि दयानंद ने राजे यशपाल पर गौरी के आक्रमण को १२४९ विक्रमी क्यो लिखा ?? क्या कभी इसपर विचार किया आपने या लेख में इसका वर्णन किया ?

( क्या कहेंगे - १०२ वर्ष के इस अंतर को ऋषि नही जानते थे, जो गौरी के आक्रमण काल १२४९ विक्रम संवत का यथार्थ तथ्य लिखा ? )

निश्चय ही ७४५ वर्ष का आंकड़ा मोहनचंद्रिका से लिया गया है और १२४९ विक्रमी संवत ऋषि ने अपनी टिप्पणी प्रस्तुत की थी ताकि लोग इसको जानकर इतिहास संबंधी शोध कार्य करे !

पाठकगणों ! जब महर्षि दयानंद ने पूर्व ही कह चुके थे की हमारे आर्य सज्जन इतिहास विषयी शोध करे ताकि देश को लाभ पहुंचे ! तब भी बजाए इसपर शोध कार्य करने ये महाशय स्वयं को महर्षि का शिष्य बतला उनका ही उपहास कर रहे है । यहां गणना ही साफ बता रही है , की यह वंशावली अपूर्ण है , गौरी के १२४९ विक्रम संवत तक वंशावली में वर्ष गणना पूर्ण नही होती । ये ऋषि दयानंद को भी पूर्व ही विदित था , हमे भी विदित है, और इनको छोड़ पूरे आर्यावर्तवासियों को भी विदित हो चुकी है । (* इसपर पंडित भगवदत्त जी का अच्छा शोध कार्य है वह भी द्रष्टव्य है और डॉ सुरेंद्र कुमार जी ने भी डोंगरी से ऐसी वंशावली दिया है उनके शोध में )

अतः निर्विवाद रूप से सिद्ध है की सत्यार्थ प्रकाश ११वे सम्मुलास के १२४९ विक्रमी संवत का संबंध वंशावली से नही , प्रत्युत् प्रचलित इतिहास से संबंधित था , इस हेतु देश के हितार्थ वही इतिहास पाठको को प्रदान किया । भले ही ये बात सत्य हो की इस्लामी अक्रांताओ के इतिहास पर इतिहासकारो में अनगिनत आपसी मतभेद रहे है , सही कौन गलत कौन, निर्णय करना आज भी साध्य है, दयानंद तो फिर भी अपने संभावित शैली से निर्दोष ही है और ग्रंथ को न समझकर आक्षेप कर्ताओं ने भूल की है ।

तभी, इनसे लेख में गणितीय त्रुटि भी हुई , इन्होंने १२४९ वि. + ७४५ = २००३ वि. सं. को जोड़कर साबित कर दिया है की इनमे गणित में तो समस्या है ही है (क्योंकि १२४९ + ७४५ = १९९४ वि. ) साथ ही इतिहास में भी इन्हे लेश मात्र ज्ञान नही है । क्योंकि सत्यार्थ प्रकाश में ऋषि ने अंतिम टिप्पणियों में सर्व विदित तथ्य ही अपनी ओर से रखा था । [ यथा , गौरी के आक्रमण १२४९ विक्रमी में बताया यह ठीक जानकारी है। यह ऋषि ने सर्वतंत्र तथ्य दिया हुआ है ] आगे की गणना , "पीढ़ी ५३, वर्ष ७४५ , मास १ , दिन १७" जो लिखा है उसी मोहनचंद्रिका अनुसार है , ऋषि के स्वमत या गणना से नही । 

अब इनके खंडन लेख की अगली महादोष प्रदर्शित करते है -
आप समझते है भारत में मुसलमान शासन गौरी से ही आरंभ हुआ वह आपकी मिथ्या अवधारणा वा इतिहास संबंधी महाभूल ही है । जो अपने मन से ही १२४९ विक्रमी संवत से ७४५ वर्ष जोड़ लिए यह ठीक नहीं, जैसा की पूर्व में कह आए सो कही का रोड़ा कही को जोड़कर मनमानी नही करनी चाहिए ! वंशावली में कई बीच बीच के राजाओं के नामों का अभाव दृष्टिगत होते है , जिसे आपने ध्यान न रखा, 
( तथा दुर्जनतोष न्याय से तुम्हारे अनुसार ही करे, विक्रम से यशपाल तक भी जोड़ लेवे , तो ११४७ विक्रमी वर्ष ही आता है , इसमें ७४५ वर्ष को जोड़ो तो १८९२ विक्रमी आता है यानी 1835 CE , बताओ मोहनचंद्रीका में भविष्य त्रुटि तो यहां भी नही सिद्ध होगी ) हालाकि इसमें गजनवी को जोड़ना जरूरी है*
ऋषि इन सभी दोष को जानते थे तभी पूर्ण सहमति से अपनी बात नही रखते । आगे जो पूर्वपक्ष की दो भारी भरकम भूले हमे इनके पक्ष में दृष्टिगत आई है , उसे भी रख इनका पर्याप्त खंडन करेंगे -

पाठकगणों! पूर्वपक्ष महोदय श्री श्री १०८ गुडलक मिश्र जी को ये सामान्य ज्ञान होना चाहिए की भारत में मुसलमान सल्तनत गौरी से नही, परंतु महमूद गजनवी से आरंभ हुआ था, और जैसा की ऊपर बता आए है इसके भारत में प्रवेश काल पर इतिहास कारो में भारी मतभेद रहा है । और भारत में इन दोनो के ही पूर्वोक्त अनुसार भारतीय राजाओं से अनेक युद्ध एवं आक्रमण कालो में मतभिन्नता बताई जाता है , तथा ऋषि भी ११वे सम्मूलास आरंभ से महमूद गजनवी के विषय में जानते थे तो उसकी पीढ़ी वर्ष को घोरी से पहले जोड़ना चाहिए था जो ये भूल कर गए !! जो ७४५ वर्ष का आंकड़ा है वह मुसलमान शासकों का है जो की घोरी से भी पूर्व से भारत में आ चुके थे, जिसमे आपको निश्चित ही गजनवी को ग्रहण करना होगा और उसे भी इसी ७४५ वर्ष में स्थान देना होगा जो गणना को पीछे ही ले जाता है । और गजनवी सर्वमत में गौरी से पूर्व प्रवेशकर्ता रूप में सर्व प्रकार सिद्ध है । आपको छल त्यागकर इस वर्ष त्रुटि भविष्योपकथन में गजनवी को स्थान देकर ठीक अनुमान करना उचित था परन्तु आप ठहरे कपटी ! कहा से लोगो को सत्य बताते?

दूसरी विचारणीय भूल है, British East India Company के भारत में अनेक युद्ध हुए Battle of plassey इत्यादि , सो ये तथ्य भी आपने लेख में लोगो से छिपा सबको मूर्ख बनाने का ही कार्य किया है । अब मोहनचंद्रिका वाले जिस पुस्तक (संवत १७८२) से वंशावली को लेता है, वहा भारत में अंग्रेजो का प्रवेश किस काल से मानता है उसे भी घटाने पर विचार करना जरूरी है । ......... (इसे हम विचारणीय कोटि में रखेंगे क्योंकि मोहनचंद्रिका अनुसार अंतिम मुसलमान बादशाह के प्रमाण का वर्तमान में अभाव है सो ठीक ठीक जानकारी नहीं दी जा सकती )

पूर्वपक्ष - 

समीक्षक - आपके बुद्धि के क्या ही कहने ? लेखक में दोष भी अपने मूर्खता से लगा देते हो । सत्यार्थ प्रकाश में ऋषि के वाक्य है " पीढ़ी ५३ , वर्ष ७४५ , मास १ , दिन १७ । " इसमें कहा लिखा पढ़ लिया की ये घोरी की वंश की पीढ़ी है ?  ऋषि दयानंद जब भी पीढ़ी शब्द का प्रयोग करते है उसका अर्थ वंश नही होता । ये उन्होंने अपने पुस्तको में कई बार बताया है ।
 देखो उपदेश मंजरी नवम उपदेश से -


प्रश्न - महमूद गजनवी को क्यों बीच में टपकाया ??

 उत्तर - सत्यार्थ प्रकाश का लेखक उससे परिचित था इससे शेषवत अनुमान से हमने वर्षो के आधिक्य को महमूद गजनवी के स्थान से पूर्ण किया ( किसी भी इतिहासकार ने महमूद गजनवी को गायब नही किया इससे) ।

प्रश्न - क्या ऋषि दयानंद महमूद गजनवी का इतिहास भी जानते थे ?? कोई प्रमाण दीजिए ।
उत्तर - हम सभी जानते है भारत में मुसलमान अक्रांताओ का इतिहासारंभ सुलतान मुहम्मद घोरी से नही, प्रत्युत् महमूद गजनवी से हुआ था यह सत्य इतिहास सभी को अवश्यमेव विदित है । सत्यार्थ प्रकाश ११वे सम्मुलास अंतर्गत ' कालियाकन्तसोमनाथादिसमीक्षा' विषय में ऋषि ने बादशाह महमूद गजनवी के सोमनाथ और मथुरा आक्रमण को वर्णित किया है, इससे बोध होता है की उन्होंने भली प्रकार इतिहास के किताबो को पढ़ा था, अनजान होते तो महमूद का इनपर आक्रमण और धरती से ऊपर उठे सोमनाथ की प्रतिमा का जिक्र कैसे करते ?? इससे यही अनुमानित है की ऋषि ने बादशाह महमूद गजनवी के आक्रमण काल पर विभिन्न मतों पर शोध हमे सौंपा था, समयाभाव के कारण ही उन्होंने वंशावली में इसका नाम नही लिया है , और संक्षेप में लिख छोड़ा क्योंकि पाठको के लिए सामान्य ज्ञान था । 

अतः सत्यार्थ प्रकाश में त्रुटि दिखाने वालो ने भ्रांतिवश ऋषि की शैली को न समझा और मन माने दोष लगाए जिसका की इस लेख में हमने निराकरण किया !

अलमति विस्तरेण।





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