भगवान् श्रीराम का अयोध्या पुनरागमान कब और इसका दीपावली से संबंध?

लेखक - यशपाल आर्य

आज समाज में ऐसी मान्यता है कि भगवान् राम दीपावली के दिन ही अयोध्या आए थे इसीलिए अयोध्यावासी आज के दिन नगर को सजाने हेतु दीपक जलाए थे तबसे ही दीपावली मनाई जाती है। आज हम वाल्मीकि रामायण से जानेंगे कि भगवन् राम अयोध्या कब आए थे?

भगवान् राम के पिता महाराज दशरथ जी उनके युवराज पद देने के विषय में कहते हैं-

वाल्मीकि रामायण सर्ग 3 श्लोक 4 (गीता प्रेस)

अब अन्य संस्करणों से देखें-

अयोध्याकाण्ड सर्ग 5 श्लोक 4 (पश्चिमोत्तर संस्करण)
अयोध्याकांड सर्ग 2 श्लोक 4 (बंगाल संस्करण)

अयोध्याकांड सर्ग 3 श्लोक 4 (Critical edition)

यहां स्पष्ट है कि भगवान् राम का युवराज बनना चैत्र मास में निश्चित हुआ था। आगे सर्ग ४ के श्लोक २२ से पता चलता अगले ही दिन उनका राज्याभिषेक होना था जबकि युवराज बनने के स्थान पर अगले ही दिन कैकेई के कारण उन्हें वनवास प्राप्त हुआ। जिस दिन राज्याभिषेक होना होता है उसी दिन कैकेई ने वनवास की गणना उसी दिन से आरंभ हो जाती है, इस विषय में सुमंत्र का यह कथन देखें-

अयोध्याकांड सर्ग 40 श्लोक 12 (गीता प्रेस)

महाराज दशरथ की मृत्यु के बाद जब भरत जी को पूरी बात पता चलती है तो वे बहुत दुखी होते हैं और भगवान् राम को वापस लाने हेतु चित्रकूट को चले जाते हैं। उस प्रसंग का यह श्लोक देखें-

अयोध्या काण्ड सर्ग 112 श्लोक 25,26 (गीता प्रेस)

अर्थात् जब भगवान् राम का वनवास काल पूर्ण होगा तभी वे वापस आ जायेंगे, एक दिन भी विलंब नहीं करेंगे। अब यदि उनका वनवास चैत्र मास में शुरू हुआ तो कार्तिक मास में क्योंकर आयेंगे? अब रावण वध करने के पश्चात् जब भगवान् राम महर्षि भरद्वाज के आश्रम में जाते हैं तो उस प्रसंग का यह श्लोक द्रष्टव्य है-

युद्ध कांड सर्ग 124 श्लोक 1 (गीता प्रेस)

इसी सर्ग में भगवान् राम से महर्षि भरद्वाज कहते हैं-

युद्ध कांड सर्ग 124 श्लोक 17 (गीता प्रेस)

इसे अन्य संस्करणों से भी देखें

युद्ध कांड सर्ग 105 श्लोक 1 (पश्चिमोत्तर)

यहां श्लोक २ में जो “फाल्गुनस्य सिते पक्षे राघवः पुनर् आगतः” जो श्लोकांश है यह वाल्मीकि रामायण के अन्य प्रमाणों से विरुद्ध होने तथा अन्य संस्करणों में न प्राप्त होने से मिलावट है।

इसी सर्ग का श्लोक १६ देखें

अब बंगाल संस्करण से देखें
युद्ध कांड सर्ग 109 श्लोक 2 (बंगाल संस्करण)
इसी सर्ग का श्लोक 14 देखें

अब युद्ध कांड सर्ग 112 श्लोक 1 (critical edition) देखें
इसी सर्ग का श्लोक १५ देखें

आगे वे इस सूचना को भरत जी को देने लिए भगवान् हनुमान जी को बोलते हैं। अब इन प्रमाणों को देखें तो उनका वनवास काल पंचमी को पूर्ण हो गया था, जबकि एक दिन महर्षि भरद्वाज के यहां रुकने से वे चैत्र मास की षष्ठी तिथि को अयोध्या पहुंचे थे। रह गई पक्ष निर्धारण की बात तो उसपर भी विचार कर लेते हैं। यहाँ यह शंका हो सकती है कौन-से मास की पञ्चमी? इसका सीधा समाधान यह है कि मास बताये बिना तिथि कही जाए तो प्रथम मास की तिथि जानी और मानी जाती है उदाहरणार्थ 'न्यू इयर्स डे' (New Year's Day) अंग्रेजी सन् के प्रथम मास जनवरी की पहली तिथि को ही माना जाता है। वैसे ही यहां भी चैत्र मास का प्रथम पक्ष अर्थात् शुक्ल पक्ष का ग्रहण होगा। (वर्तमान में उत्तर भारत और दक्षिण भारत के पञ्चाङ्ग में एक पक्ष का अंतर आता है, जबकि इस दृष्टि से दक्षिण भारत का पञ्चाङ्ग सही है क्योंकि चैत्र मास १५ दिन व्यतीत होने पर ही उत्तर भारत में नववर्ष मनाया जाता है, जबकि नववर्ष हमेशा नए वर्ष के नए महीने से मनाया जाता है।) 


दीपावली (शारदीय नवसस्येष्टि) मनाने का कारण

पहले इसका नाम शारदीय नवसस्येष्टि था, जो कालांतर में दीपावली के नाम से प्रचलित हो गया। नवसस्येष्टि का अर्थ है नए फसल से होने वाला यज्ञ। इसके हम कुछ प्रमाण देते हैं।

सर्वप्रथम पारस्कर गृह्यसूत्र के तृतीय काण्ड का प्रमाण देखें-

अब गोभिल गृह्यसूत्र का वचन देखें

अब हम वाल्मीकि रामायण से भी नवसस्येष्टि का प्रमाण देते हैं-

अरण्यकांड सर्ग 16 श्लोक 6 (गीता प्रेस)

इसपर गोविंदराज की व्याख्या देखें, उनके व्याख्या से भी यहां नवसस्येष्टि ही सिद्ध होता है


अब इसे बंगाल संस्करण से भी देखें

अरण्यकाण्ड सर्ग 22 श्लोक 6 (बंगाल संस्करण)

यहां हेमन्त ऋतु के प्रारंभ का वर्णन है और लक्ष्मण जी कह रहे हैं कि नवसस्येष्टि बीत चुकी है, अब यहां भ्रान्ति हो सकती हैं कि क्या पहले हेमन्त ऋतु में नवसस्येष्टि है। उत्तर है नहीं, यहां हेमन्त ऋतु के प्रारंभ का वर्णन है और इससे पूर्व अर्थात् शरद ऋतु में नवसस्येष्टि हो चुका है। इसको और अधिक स्पष्ट करने हेतु आप किष्किंधा काण्ड के 43वें सर्ग के श्लोक संख्या 47 व 53 में देख सकते हैं जहां शरद ऋतु में धान के फसल का पक जाने वर्णन मिलता है।

इस पर्व का इतना ही नहीं अपितु भगवान् मनु के काल का भी प्रमाण प्राप्त होता है। भगवान मनु लिखते हैं -

मनुस्मृति अध्याय 4 श्लोक 26

यहां पशुयज्ञ का अर्थ पशुबलि से नहीं है। पशु शब्द के अन्य अर्थ भी होते हैं। यदि कोई पशुयज्ञ से पशु बलि ले तो उसका मत मिथ्या है क्योंकि भगवान् यास्क कहते हैं-

अध्वरः = यज्ञनाम (निघण्टु ३.१७)

अध्वर शब्द की व्याख्या करते हुए भगवान् यास्क लिखते हैं -

अध्वर इति यज्ञनाम। ध्वरतिर्हिंसाकर्मा। तत्प्रतिषेधः।

[निरुक्त १.८]

अपने पर्व को मनाने का वास्तविक कारण जानें तथा इतिहास को भी सही रूप से समझें। ईश्वर हम सभी को सद्बुद्धि व सत्य के ग्रहण तथा असत्य के त्यागने का सामर्थ्य प्रदान करें इसी कामना के साथ....

।।ओ३म् शम्।।


संदर्भित एवं सहायक ग्रंथ

  • वाल्मीकि रामायण (विभिन्न संस्करण)
  • वाल्मीकि रामायण (स्वामी जगदीश्वरानंद जी द्वारा संशोधित)
  • आर्य पर्व पद्धति
  • गोभिल गृह्यसूत्र
  • आपस्तम्ब गृह्यसूत्र
  • मनुस्मृति
  • निघण्टु
  • निरुक्त
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