रामायण के कुछ ऐतिहासिक प्रमाण | Some historical evidence of Ramayana

Historical evidence of Ramayana

लेखक - यशपाल आर्य
baroda oriental institute no. 14061 की undated पांडुलिपि
Manuscript of Ramayan

संवत् 1076 की पांडुलिपि
Oldest Manuscript of Ramayan

Original Manuscript of Ramayan
नेपाल की इस पांडुलिपि के तीन पत्रों का चित्र
रामायण की यह पांडुलिपि Bir Library काठमांडू नेपाल में सुरक्षित है। यह २१.५"×५" के ताड़ पत्र पर नेवारी अक्षरों में लिखित है। इसमें लिखा है-

संवत् १०७६ आषाढ़ वदि ४ महाराजाधिराज पुण्याव [ण्यश्] लोक सोमदेहोद्भवगरुडध्वजश्रीमहाप्रियदेव नुद्यमानती [वी]र भुक्तीज्वलगुणविजयवाप्रे [यावाप्ते? यावाप्त्यै? यावीप्र?] क्षि[-ति-] पाल देशीत् [शिक्] प्रभाल्लु [व] शालिक श्रीआनन्दस्य कृते पाढ [दु] कावस्थिते पण्डितश्री श्रीकरस्यात्मज श्रीगोपतिना[-ऽ-]लेखीद।।
इससे पता चलता है कि यह पांडुलिपि संवत् १०७६ अर्थात् १०२०ई. की है।


नेवारी संवत 791 की पांडुलिपि
Ramayan in ancient India

रामायण की यह पांडुलिपि Bis Library काठमांडू नेपाल में सुरक्षित है। यह २०.५"×५" साइज के मोटे country paper पर नेवारी अक्षरों में लिखी गई है। इसमें लिखा है-
सम्वत ७९५ आषाढ वदि ९ शुकेह्ने श्री श्रीसुमतिजयाजेतामित्रमल्लदेवशन् रमायनवाचकात्मगिरामप्र वाशङ्गयाचेलशआदिकाण्ढ सम्पूर्ण्णया फिढिन जरो।।
इससे पता चलता है कि यह पांडुलिपि संवत् ७९५ की है, यहां ओरियंटल इंस्टीट्यूट ऑफ बड़ौदा ने इसे नेवारी संवत माना है, इस प्रकार यह १६७५ई. की हुई।

लक्ष्मण संवत 241 की पांडुलिपि
Ramayan in ancient India

रामायण की यह पांडुलिपि Palace Library दरभंगा में सुरक्षित है। यह पाण्डुलिपि १२"×२.५" साइज की है जो मैथिली अक्षरों में लिखी गई है। इसमें लिखा है-
ल स २४१ श्रावणवदि ६ नौरिग्रामे उपाध्याय श्रीहरदत्त श्रीहरदत्ताभ्यान्चेति लिखिता इति।।
इससे पता चलता है कि यह लक्ष्मण संवत २४१ अर्थात् १३६०ई. में लिखी गई।

शक संवत् 1473 की पांडुलिपि
Critical edition of Ramayan

बालकांड की इस पांडुलिपि की प्रतिलिपि Palace Library दरभंगा में रखी है, जो देवनागरी अक्षरों में 6"×6" साइज के पेपर पर मुद्रित है। इसकी पांडुलिपि में पत्रों की कुल संख्या 249 है, जो मैथिली अक्षरों में लिखी गई है। यह पत्र पर एक साइड लिखी गई है, पत्रों की साइज 13.25"×8" है। इसमें लिखा है-
शाके वह्निनगेऽब्धिचन्द्रवलिते मासे शुभे फाल्गुने। पक्षे शुक्लतरे दिने भृगुसुतम्यालेखि पूर्णे तिथौ।।
पुस्त गोनरनामकोऽधमद्विजो।।
इससे पता चलता है कि यह पांडुलिपि शक संवत् 1473 अर्थात् 1551 ई. में लिखी गई।

देवनागरी में 1831 ई. की पांडुलिपि
Manuscript of Ramayan

1836 ई. की पांडुलिपि

और भी अनेक पांडुलिपियों का विवरण देखें










रामायण का सबसे पुराना प्रकाशन

विलियम कैरी एवं जॉशुआ मार्शमैन ने वाल्मीकि रामायण का अनुवाद व संपादन किया। जो तीन भाग था, प्रथम भाग में बालकांड व द्वितीय तथा तृतीय भाग में अयोध्या काण्ड था। ये तीनों भाग क्रमशः 1806,1808 व 1810 में प्रकाशित हुए। विलियम कैरी के प्रिंट शॉप में 11 मार्ग 1812 को एक बड़ी आग लग गई जिसमें £10000 का नुकसान हुआ। यह भी संभव है इनके अनुवादित व संपादित रामायण आगे के आगे के भाग इसमें जल कर नष्ट हो गए हो। इससे पूर्व हमें प्रेस से प्रकाशित रामायण प्राप्त नहीं होता अर्थात् इससे पूर्व सब पांडुलिपियों के रूप में उपलब्ध होता है। अतः इसे रामायण का सबसे पुराना प्रकाशन कहा जा सकता है।
Oldest book of Ramayan

Oldest published book of Ramayan

Ramayan

AUGUSTUS GUILELMUS A SCHLEGEL द्वारा सम्पादित रामायण
रामायण का यह प्रकाशन भी 19वीं शताब्दी का है, यह दो भागों में प्राप्त होता है। प्रथम भाग में संपूर्ण बालकांड व अयोध्या काण्ड 20 सर्ग तक व द्वितीय भाग में अयोध्या काण्ड सर्ग 21 से संपूर्ण अयोध्या काण्ड पर्यंत है।
Ramayan

Ramayan

Ramayan recension

अब रामायण के कुछ प्रसंगों का 5वीं, 6वीं सदी में टेराकोटा के प्रमाण का देखें

Ramayan terracotta

Proof of Ramayan in gupta period

Valmiki Ramayan ka shlock

यहां रिसर्चर के अनुसार गुप्त ब्राह्मी लिपि में लिखा है - ‘…chan antarā raghunandanah, āsadassāda mahāgridhaeh’
जब भगवान् राम महर्षि अगस्त्य से किसी अपने निवास के लिए किसी वन के विषय में पूछते हैं तो वे उन्हें पंचवटी का पता बताते हैं, मार्ग में उनकी भेंट जटायु से होती है, उसी प्रसंग का यह श्लोक है। यह श्लोकांश हमें थोड़े पाठभेद से वाल्मीकि रामायण में प्राप्त होता है  में प्राप्त होता है-
अथ पञ्चवटीं गच्छन्नन्तरा रघुनन्दनः।
आससाद् महाकायं गृध्रं भीमपराक्रमं।।
(गीता प्रेस अरण्यकांड सर्ग १४ श्लोक १)
पश्चिमोत्तर पाठ देखें -
पञ्चवटीं तु गच्छन्तावन्तरा रघुनन्दनौ।
आससाद महा गृद्ध्रो  जटायुरिति विश्रुतः॥
(अरण्य काण्ड सर्ग १९ श्लोक १)
Terracotta of Ramayan

Historical evidence of Ramayan

Ramayan ka puratattvik pramaan

Ramayan ka praman

Ramayan in ancient India

Videsho me Ramayan







और भी टेराकोटा देखें
इसमें भगवान् श्रीराम और लक्ष्मण जी का जटायु जी से मिलना दर्शाया गया है। वस्तुतः यहां गृध्रराज शब्द का अर्थ न समझने से ऐसी भ्रान्ति के कारण जटायु जी को पक्षी माना जाने लगा।




एलोरा गुफा मंदिर पर भी हमें भगवान् श्रीराम की कथा प्राप्त होती है -
Ramayan on Ellora caves


 
संदर्भित एवं सहायक ग्रंथ/वेबसाइट
  • Oriental Institute of Baroda द्वारा प्रकाशित वाल्मीकि रामायण का Critical Edition
  • Wikipedia
  • https://theartofsouthasia.com
  • AUGUSTUS GUILELMUS A SCHLEGEL द्वारा सम्पादित रामायण
  • WILLIAM CAREY तथा JOSHUA MARSH MAN द्वारा संपादित व संशोधित रामायण
  • वाल्मीकि रामायण गीता प्रेस
  • वाल्मीकि रामायण पश्चिमोत्तर पाठ
  • Indian Historical Review 45(1)
  • Ramayana In Historical Perspective

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