क्या माता सीता की उत्पत्ति धरती से हुई थी?

लेखक - यशपाल आर्य
माता सीता जी के विषय में आज समाज में एक भ्रांति है कि उनकी उत्पत्ति पृथ्वी से हुई थी। यह बात वाल्मीकि रामायण बालकांड सर्ग 66 के श्लोक 13 व 14 में भी आई है। वहां इस प्रकार है कि जनक जी हल से यज्ञ के लिए जमीन को समतल कर रहे थे तो उन्हें पृथ्वी में पृथ्वी से उत्पन्न एक कन्या मिली।
अब इसपर विचार करते हैं कि क्या यह बात मौलिक है या प्रक्षिप्त है। विचार करने पर दो मुख्य बिंदु उपस्थित होते हैं -
१. जनक जी राजा थे तो भूमि वे क्यों समतल करेंगे अपितु भूमि तो समतल उनके सेवकगण करेंगे।
२. यदि जमीन से आदि सृष्टि के बाद भी मनुष्योत्पत्ति होती है आज भी होनी चाहिए थी और उस काल में भी अनेक लोग धरती से उत्पन्न होते लेकिन ऐसा कुछ नहीं दिखता।
तो इन दो बिंदुओं पर गंभीरता पूर्वक विचार करने से यह पता चलता है कि सीता जी के जन्म की जो कथा यहां है व समाज में भी प्रचलित है वह मिथ्या है।
अब कुछ लोग द्वितीय बिंदु पर आक्षेप लगाना शुरू करेंगे कि आदि सृष्टि में मनुष्य की उत्पत्ति धरती से कैसे हो सकती है। वे लोग evolution से मनुष्य की उत्पत्ति मानते हैं, यहां विषय न होने के कारण हम theory of evolution की समीक्षा कर के लेख को अनावश्यक बड़ा नहीं करना चाहते इसलिए जिसे इसका अच्छी प्रकार से खंडन देखना हो वह aryavart regenerator यूट्यूब चैनल पर सर्च कर के देख सकते हैं। अब जो लोग कहते हैं कि मनुष्य की उत्पत्ति धरती से नहीं हो सकती उन लोगों के लिए संक्षेप में एक उदाहरण से समझाते हैं। Pennsylvania में एक भेड़ के बच्चे को artificial गर्भ में बनाया गया। आप चाहें तो इस लेख को पढ़ सकते हैं या अधिक जानकारी के लिए गूगल पर सर्च कर सकते हैं।
जैसे यहां एक भेड़ के बच्चे को artificial गर्भ में बनाया गया, वैसे ही आदि सृष्टि में मनुष्य आदि सब प्राणियों की उत्पत्ति नेचुरल तरीके से धरती से ही हुई व जिसे मनुष्य उत्पत्ति का वास्तविक सिद्धांत जानना हो वे आचार्य अग्निव्रत जी का विकासवाद का वैदिक सिद्धांत नामक लेख अवश्य पढ़ें।
अब हम वाल्मीकि रामायण से ही जानने का प्रयास करते हैं कि सीता जी वास्तव में किसकी पुत्री थीं
सर्वप्रथम जब भगवान् श्री राम व माता सीता का विवाह होता है तो दोनों के पूर्वजों का वंश शुद्धि के लिए वर्णन होता है। यदि माता सीता जमीन से उत्पन्न हुई होतीं तो इसकी कोई आवश्यकता नहीं होती।
अब हम अन्य प्रमाण देखते हैं -
बालकांड प्रथम सर्ग में महर्षि वाल्मीकि से देवर्षि नारद ने भगवान् राम के विषय में बताते हुए उनके वनवास गमन के समय कहते हैं कि
अर्थात् जनक के कुल में उत्पन्न सीता भी, जो देवमाया के समान सुंदरी, समस्त शुभ लक्षणों से विभूषित, स्त्रियों में उत्तम, राम की प्राणों के समान प्रियतमा पत्नी तथा सदा ही पति का हित चाहने वाली थी, वह श्री राम जी के पीछे वैसे चलीं जैसे चंद्रमा के पीछे रोहिणी चलती है। उस समय पिता दशरथ और पुरवासी मनुष्यों ने दूर तक उनका अनुसरण किया।
यहां सीता जी को "जनकस्य कुले जाता" अर्थात् जनक के कुल में उत्पन्न होने वाली कहा है। अब कोई कैसे कह सकता है कि सीता जी जनक की पुत्री नहीं अपितु उन्हें भूमि समतल करते समय मिली थीं।
बालकांड सर्ग 66 के श्लोक 17में जनक जी ने सीता जी को सुता कहा है।
सुत शब्द का संस्कृत हिन्दी कोश (लेखक - वामन शिवराम आप्टे) में "जन्म दिया गया, पैदा किया गया" अर्थ किया गया है, सुत का स्त्रीलिंग सुता है।
अर्थात् यहां भी सीता जी जनक की ही पुत्री सिद्ध होती हैं।
बालकांड सर्ग 67 के श्लोक 22 में जनक जी विश्वामित्र जी से कहते हैं कि मेरी पुत्री सीता दशरथ के पुत्र श्री राम को पति रूप में पा कर जनकवंश की कीर्ति का विस्तार करेगी।
अब अगर सीता जी पृथ्वी से उत्पन्न हुई होती तो यहां जनक जी ऐसा क्यों कहते कि सीता जी जनक वंश की कीर्ति का विस्तार करेंगी?
तथा इसमें व इसके अगले, अर्थात् बालकांड सर्ग 67 के 22 व 23 दोनों ही श्लोकों में जनक जी ने सीता जी को अपनी सुता कहा है। अतः सुता शब्द से भी उनकी पुत्री सिद्ध होती हैं।
बालकांड सर्ग 68 के श्लोक 7 में जनक जी ने सीता जी को मामात्मजा कहा है। तथा इसके अगले श्लोक में मम सुता कहा है।
तथा इसी सर्ग के श्लोक 16 में दशरथजी ने सीता जी को जनक जी पुत्री कहा है।
बालकांड सर्ग 69 के श्लोक 19 से भी सीता जी जनक की ही पुत्री सिद्ध होती हैं।
बालकांड सर्ग 70 के 45वें श्लोक से भी सीता जी जनक की ही पुत्री सिद्ध होती हैं।
सर्ग 71 में भी जनक जी ने सीता जी को मम सुतां कहा है।
सर्ग 73 के 26वें श्लोक में भी जनक जी ने सीता जी को मम सुता कहा है।
इसी सर्ग के 29वें श्लोक में भी सीता जी को जनक जी ने अपनी पुत्री कहा है।
बालकांड सर्ग 77 के श्लोक 28 में सीता जी को जनकात्मजा कहा है।
अब आत्मजा शब्द का हम व्याकरण से अर्थ देखते हैं -
संस्कृत में आत्मन् प्रातिपदिक से पञ्चम् विभक्ति हो कर अष्टाध्याई सूत्र 3.2.98 से इसमें जनि प्रादुर्भावे अर्थ में (दिवादि गण आत्मने पदी) धातु को ड प्रत्यय होने से आत्मज शब्द सिद्ध होता है। इसमें टाप् प्रत्यय लगने से स्त्रीलिङ्ग में आत्मजा शब्द सिद्ध होता है। जिसका अर्थ होता है स्वयं से उत्पन्न हुई पुत्री। इससे भी सीता जी जनक की ही पुत्री सिद्ध होती हैं।
अयोध्याकांड सर्ग ९८ में भी सीता जी को जनकात्मजा कहा है-
इसी प्रकार अयोध्याकांड सर्ग १०३ में भी सीता जी को जनकात्मजा कहा है
इसी प्रकार अरण्यकाण्ड सर्ग 42 में भी सीता जी को जनकात्मजा कहा है-
इसी प्रकार अरण्यकाण्ड के 45वें सर्ग में भी सीता जी को जनकात्मजा कहा है
इसी प्रकार अरण्यकाण्ड के 51वें सर्ग में भी सीता जी को जनकात्मजा कहा है-
अरण्यकाण्ड का सर्ग 53 भी देखें, यहां भी सीता जी को जनकात्मजा विशेषण दिया गया है-
अरण्यकाण्ड सर्ग 37 में भी सीता जी को जनकात्मजा कहा है -
अयोध्याकांड के सर्ग 26 के श्लोक 20 में सीता जी को बड़े कुल में उत्पन्न होने वाली कहा है। जमीन से उत्पन्न होने वाले के लिए यह शब्द नहीं प्रयुक्त हो सकता।
अयोध्याकांड सर्ग 27 के श्लोक 10 में सीता जी अपने माता पिता द्वारा दिए गए उपदेशों के बारे में बताती हैं। धरती जड़ होने से उपदेश नहीं दे सकती अतः यहां भी धरती से उत्पन्न होने का खंडन है।
अब एक प्रमाण देखें यहां सीता जी ने अनुसूया जी से कहती हैं कि मुझे मेरी जननी ने विवाह के समय अग्नि के समीप जो उपदेश दिया था वह भी मुझे अच्छी तरह याद है, देखें अयोध्याकांड सर्ग 118
जननी का अर्थ होता है जन्म देने वाली
अगर उनका जन्म जड़ धरती से हुआ होता तो क्या वह इस प्रकार विवाह काल में अग्नि के समीप उपदेश दे सकती है? कदापि नहीं, क्योंकि जड़ धरती में चेतन के गुण क्योंकर आ सकते हैं। अतः यहां सीता जी के जननी से तात्पर्य कोई चेतन महिला से ही है, न कि जड़ धरती से।
अयोध्याकांड सर्ग 28 के श्लोक 3 में भी सीता जी को बड़े कुल में उत्पन्न होने वाली कहा है।
अयोध्याकांड सर्ग 39, श्लोक 17 में सीता जी को अच्छे कुल में उत्पन्न कहा है।
अगर सीता जी धरती से उत्पन्न हुई होतीं तो ऐसा क्यों कहा जाता?
अयोध्याकांड सर्ग 118 के श्लोक 53 को देखिए
यहां सीता जी उर्मिला को अपनी अनुजा कहती हैं। अगर वह धरती से उत्पन्न हुई होतीं तो ऐसा कदापि न कहतीं।
सुंदरकांड सर्ग 21 के श्लोक 5 में माता सीता रावण से कहती हैं कि मेरा महान कुल में जन्म हुआ है तथा महान कुल में विवाह हुआ है।
अगर सीता जी धरती से उत्पन्न हुई होतीं तो ऐसा क्यों कहतीं कि मेरा महान् अर्थात बड़े कुल में जन्म हुआ है।
महाभारत वनपर्व के अध्याय 274 के श्लोक 9 में देखिए।

यहां भी सीता जी को जनक जी की ही पुत्री कहा है।
शिवपुराण रुद्र संहिता - पार्वती खंड के द्वितीय अध्याय के 29वें श्लोक में सीता जी को जनक तथा उनकी द्वितीय पत्नी योगिनी की पुत्री कहा है।
यह श्लोक कितना प्राचीन है वा यह बात कितनी प्रामाणिक है हम नहीं कह सकते किंतु यहां यह श्लोक उद्धृत करने का कारण यह है कि अगर उस समय सीता जी की धरती से उत्पन्न होने वाली बात की वाल्मीकि रामायण में मिलावट नहीं की गई थी। अगर की गई होती तो यह बात नहीं होती। अर्थात् सीता जी को धरती से पैदा होने वाली मिलावट वाल्मीकि रामायण में शिव पुराण के इस श्लोक लिखने के बाद की है, यह स्पष्ट है।
लेख पढ़ कर आप सभी महानुभावों को स्पष्ट हो चुका होगा कि सीता जी की धरती से उत्पन्न होने वाली बात मिलावट है और वास्तव में वे जनक जी की पुत्री थीं।

संदर्भित एवं सहायक ग्रंथ
१. वाल्मीकि रामायण
२. रामायण भ्रांतियां एवं समाधान
३. स्वामी जगदीश्वरानंद जी कृत वाल्मीकि रामायण पर भाष्य (सहायता - सीता जी के माता वाले शिव पुराण के श्लोक का संदर्भ)
४. आप्टे कोश
५. महाभारत
६. शिव पुराण
आशा करते हैं कि आपको कुछ नई जानकारी मिली होगी, इसे अधिक से अधिक शेयर करें ताकि लोग सत्य से अवगत हो सकें।
धन्यवाद

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