भगवान् श्री राम के द्वारा शिवलिंग पूजा करने की सच्चाई
लेखक - यशपाल आर्य
मित्रों, हम लोग TV सीरियल्स में यह देखते हैं कि रामसेतु बनाने के समय मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री राम शिवलिंग बना कर उसकी पूजा करते हैं किंतु उसकी सत्यता क्या है आइए हम वाल्मीकि रामायण के प्रमाण के आधार पर जानने का प्रयास करते हैं
जब श्रीराम लंका से अयोध्या आते हैं तो उस समय महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं
वाल्मीकि रामायण, युद्धकांड, सर्ग १२३ |
और महादेव शिव नाम के एक महापुरुष भी हुए थे, जो कैलाश के निवासी व राजा थे। वेदों से महादेव नाम देख कर महायोगी शिव जी ने भी अपना नाम महादेव रख लिया, महर्षि मनु जी मनुस्मृति में कहते हैं कि मनुष्यों ने सब नाम वेद से ही सीखा।
यहां महादेव से ग्रहण किसका होगा यह प्रकरण अनुकूल देखना होगा।
यहां संस्कृत में विभु शब्द आया है, विभु का अर्थ सर्वव्यापक होता है। अतः यहांं सर्वव्यापक महादेव से तात्पर्य परमपिता परमात्मा से है जिसका निज नाम ओ३म् है।
यहां संस्कृत में लिखा है "अत्र पूर्वे महादेवः प्रसदमकरोद् विभुः" जिसका अर्थ गीतप्रेस ने ऐसा लिखा है कि सेतु बांधने से पहले मेरे द्वारा स्थापित होकर वे यहां विराजमान हुए थे, ऐसा संस्कृत में लिखा ही नहीं है। अतः यह बात महर्षि वाल्मीकि के विरुद्ध है। प्रकरण अनुकूल निराकार सर्वव्यापक परमात्मा का ग्रहण होगा इसलिए इसका अर्थ इस प्रकार होगा कि यहीं पूर्वकाल में सर्वव्यापक महादेव ने मुझपर कृपा की थी अर्थात् परमपिता परमात्मा जो देवों के देव होने से महादेव हैं, उनकी सहाय और प्रेरणा से हमने समुद्र पर पुल बांध कर रावण का वध कर आपको ले आए।
यहां पर शिवलिंग जैसे किसी चीज का नाम नहीं आया है।
अब कुछ लोग वाल्मीकि रामायण के अतिरिक्त अन्य अनार्ष ग्रंथों का प्रमाण दे कर ऐसा सिद्ध करने का प्रयास करेंगे कि श्रीराम जी ने ने मूर्तिपूजा की थी तो इसका उत्तर बहुत ही आसान है कि श्रीराम के काल में महर्षि वाल्मीकि जी हुए थे अतः वाल्मीकि रामायण के विरुद्ध जिस ग्रंथों में जो बातें होंगी वह प्रमाण विरुद्ध होने से अमान्य होंगी।
अब प्रश्न यह उठता है कि अगर उस मंदिर की स्थापना श्री राम ने नहीं किया तो रामेश्वरम् नाम क्यों पड़ा? इसका उत्तर यह है कि दक्षिण भारत के कोई राम नाम के राजा थे उन्होंने इस मंदिर को बनाया था।
अब यह तो सिद्ध हो गया कि श्री राम मूर्तिपूजा नहीं करते थे।
अब प्रश्न यह उठता है कि अगर श्रीराम मूर्तिपूजा नहीं करते थे तो आखिर कौन सी पद्धति का प्रयोग करते थे? इसका भी उत्तर हमें वाल्मीकि रामायण में ही मिल जाता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम संध्या उपासना करते थे, जिसके कुछ प्रमाण हम यहां उद्धृत कर रहे हैं
तस्यर्षे: परमोदारं वचश्श्रुत्वा नृपात्मजौ ।
स्नात्वा कृतोदकौ वीरौ जेपतु: परमं जपम्।।
बालकांड सर्ग 23, श्लोक 3
अर्थात् दोनों राजकुमार परमोदार महर्षि के वचन सुनकर उठ बैठे, फिर स्नान और आचमन कर वे गायत्री का जप करने लगे।
वाल्मीकि रामायण, बालकांड, सर्ग २९ |
वाल्मीकि रामायण, अयोध्या काण्ड सर्ग ५० |
वाल्मीकि रामायण, अयोध्या काण्ड, सर्ग ५३ |
अयोध्याकांड सर्ग 46 |
संध्या उपासना के समय के विषय में महर्षि मनु जी लिखते हैं
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