क्या श्री हनुमान् जी आदि बंदर थे या मनुष्य

कई लोग ऐसा सोचते हैं कि श्री हनुमान जी आदि बंदर थे

इस पोस्ट में हम इसी बात की समीक्षा करेंगे क्या वास्तव में हनुमान जी आदि बंदर थे या मनुष्य थे

वाल्मीकि रामायण में जब श्री राम जी से श्री हनुमान जी मिलते हैं तो श्री राम जी श्री लक्ष्मण जी से हनुमान जी को वेदों के विद्वान बताते हैं। व्याकरण शास्त्र के ज्ञाता बताते हैं।


वाल्मीकि रामायण किष्किंधा कांड तृतीय सर्ग


अब आप बुद्धि से विचार करें क्या कोई बंदर वेदों का ज्ञानी हो सकता है, क्या बंदर शब्दों का एकदम सही तरीके से उच्चारण कर सकता है, कि उसके शब्दों के उच्चारण में एक भी गलती ना हो, व्याकरण के नियम मनुष्य के कंठ, मूर्धा आदि के अनुसार बने होते हैं न कि बन्दर के

अब कुछ लोगों को शंका हो सकती है कि वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान जी को लांगूल थी, अगर वे मनुष्य होते तो लांगूल क्यों होती? यह हमें उचित तर्क जान पड़ता है किंतु थोडी गहराई से वाल्मीकि रामायण पढ़ने पर इसका भी उत्तर मिल जाता है

रावण अपने दरबार में जब जब हनुमान जी को मारने की बात कहता है, तो विभीषण वहां पर दूत को मारना अनुचित बता कर कोई दूसरा दंड देने को कहते हैं, तो वहां पर हनुमान जी के लांगूल जलाने का निर्णय लिया जाता है, वहां पर लांगूल को आभूषण बताया गया है, यदि लांगूल शरीर का अंग होता तो उसे शरीर का अंग ही कहा जाता न कि आभूषण

वाल्मीकि रामायण सुंदरकांड 53वें सर्ग का श्लोक संख्या 3

अर्थात् वानर वर्ग के लोगों के लिए इनका लांगूल सबसे प्रिय एवं उत्तम आभूषण होता है, अतः इनके लांगूल को जला दो। यह अपना जला हुआ लांगूल यहां से ले कर जाए।

प्रायः टीकाकारों ने लांगूल का अर्थ पूँछ किया है, परन्तु यह अर्थ ठीक नहीं है। जब किष्किन्धाकाण्ड में हनुमान् जी को वेदादि शास्त्रों और व्याकरण का विद्वान् बताया है तब उन्हें पूँछवाला बन्दर कहना मूर्खता है। बाली, सुग्रीव, अङ्गद आदि सभी मनुष्य थे इनके लिए 'आर्य' विशेषण का प्रयोग यत्र-तत्र हुआ है। तारा को मन्त्रवित् कहा गया है।

लांगूल वानर जाति का राष्ट्रीय-चिह्न था। इसे ये लोग बड़ी श्रद्धा और आदर की दृष्टि से देखते थे तथा इसके अपमान को जातीय अपमान समझते थे। रावण ने इसी राष्ट्रीय-चिह्न को जलाने की आज्ञा प्रदान की थी। जैसे आजकल भी कुछ अपनी पगड़ी में मोर पंख लगा लेते हैं, परन्तु वह उनके शरीर का अङ्ग नहीं होता इसी प्रकार वानरजाति के लोग भी पूँछ सदृश कोई वस्तु लगा लेते थे। यह इनके शरीर का वास्तविक अङ्ग नहीं था।

अब शंका हो सकती है कि हनुमान जी को वानर, कपि आदि आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है, यह शब्द तो हनुमान जी को बंदर ही सिद्ध करते हैं, वस्तुतः यहां इन शब्दों का अर्थ नही समझा गया।

जैसे बलवान लोगों को हम शेर कह देते हैं इससे वह बलवान व्यक्ति वास्तविक शेर नहीं हो जाता अपितु शेर शब्द का तात्पर्य बलवान से है

जैसे गीता तीसरे अध्याय के ४१वें श्लोक में योगेश्वर भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन को भरतर्षभ कहते हैं, ऋषभ का अर्थ बैल होता है, इससे अर्जुन बैल नहीं हो गए क्योंकि यहां बलवान से तात्पर्य है अर्थात भरत वंश का बलवान ऐसा अर्थ होगा।

इसी प्रकार यहां भी समझना चाहिए

वानर - वानसम्बन्धि फलादिकं राति गृह्णाति
[शब्दशब्दस्तोममहाकोष]
अर्थात् जो वन के कंदमूल फल खाते हैं वे वानर हैं।
इसी प्रकार संस्कृत में कपि का अर्थ होता है कंपाने वाला, हनुमान जी से बड़े बड़े राक्षस लोग कांपते थे इसलिए उन्हें कपि भी कहा जाता था

शंका - आपकी बात तर्कपूर्ण है, किंतु क्या वाल्मीकि रामायण में कहीं स्पष्ट रूप से उन्हें मनुष्य कहा है

समाधान - वाल्मीकि रामायण में जब श्री राम और श्री लक्ष्मण को देख कर सुग्रीव यह शक होता है कहीं ये दोनों बालि के भेजे लोग तो नहीं न हैं, तब किष्किंधाकांड के द्वितीय सर्ग के श्लोक संख्या 22 में सुग्रीव हनुमान जी से कहते हैं कि "मनुष्य मात्र को छद्म वेश में विचरने वाले शत्रुओं को विशेष रूप से पहचानने की चेष्टा करनी चाहिए क्योंकि वे दूसरों पर अपना विश्वास जमा लेते हैं, परंतु स्वयं किसी का विश्वास नहीं करते और अवसर पाते ही उन विश्वासी पुरुषों पर प्रहार कर बैठते हैं।" इस श्लोक में "मनुष्येण" शब्द स्पष्ट रूप से आया है। यदि हनुमान आदि बंदर होते होते तो यहां पर पशु या बंदर जैसा कुछ शब्द आता।

इसके अगले श्लोक में भी "नरैः" शब्द आया है।

वस्तुतः अयोध्या राज्य में रहने वालों को 'मनुष्य' नाम से ही जाना जाता था। लंका आदि के निवासी राक्षस, वर्तमान महाराष्ट्र आदि दक्षिण देश में रहने वाले 'वानर' एवं हिमालय आदि क्षेत्र में रहने वाले 'देव' कहाते थे परन्तु वे सभी मनुष्य नामक प्राणी के ही वर्ग थे।

इन सभी प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि हनुमान जी आदि मनुष्य थे, बंदर नहीं।

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