हनुमान् जी लंका कैसे गए
और वाल्मीकि रामायण के सुंदर काण्ड के प्रथम सर्ग के श्लोक संख्या 77, 78 में जो वर्णन आया है वह उड़ने का है
वाल्मीकि रामायण के सुन्दरकाण्ड प्रथम सर्ग के श्लोक 211 व 212 में श्री हनुमान् जी के लंका प्रवेश से जुड़े दो श्लोकों में ‘निपपात’ शब्द का प्रयोग किया गया है
इन दोनों श्लोकों में ‘निपपात’ शब्द से यह स्पष्ट होता है कि वे आकाश मार्ग से समुद्र के किनारे स्थित पर्वत पर उतर गये। यदि वे वहाँ तैर रहे होते, तो ‘निपपात’ पद का प्रयोग नहीं होता, बल्कि वहाँ समुद्र तल से पर्वत के ऊपर चढ़ने का वर्णन होता, जबकि कहीं भी चढ़ने का वर्णन नहीं, इससे भी हनुमान् जी का उड़ना सिद्ध होता है।
अर्थात् वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान् जी उड़े भी थे और तैरे भी।
अब विचार करते हैं क्या कोई उड़ सकता है
हनुमान् जी के विषय में श्री राम जी लक्ष्मण जी से कहते हैं(किष्किंधा कांड तृतीय सर्ग)
इससे स्पष्ट है कि हनुमान् जी चारों वेदों के बहुत बड़े ज्ञानी थे, जो कि बिना योगी बने संभव नहीं है।
शंका - यहां पर तो तीन ही वेदों के नाम लिखे हैं, आपने चार वेद कहां से ग्रहण किया?
समाधान - "स एतां त्रयीं विद्यामभ्यतपत्तस्यास्तप्यमानाया रसान्प्रावृहद्।
भूरित्यग्भ्यो मुवरिति यजुर्म्यः स्वरिति सामभ्यः॥" (छां.उ .४.१७.३)
इससे संकेत मिलता है कि छन्द रश्मियां तीन प्रकार की होती हैं, 'ऋक्', 'यजुः' एवं 'साम'।
यजुर्वेद ३१.७ में चारों वेदों का वर्णन है
अर्थात् वेद शैली की दृष्टि से तीन हैं - ऋक्, यजुः और साम
तथा विषय की दृष्टि से चार हैं - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद
अर्थात् ऋग्वेद के सभी मन्त्रों में ऋक् रश्मियां होती हैं, इसलिए ऋग्वेद का दूसरा नाम ऋक् है। यजुर्वेद के सभी मन्त्रों में यजुः रश्मियां होती हैं, इसलिए इसे यजुः। सामवेद के सभी मन्त्रों में साम रश्मियां होती हैं, इसलिए इसे साम और अथर्ववेद के सभी मन्त्रों में इन तीनों प्रकार की रश्मियां (ऋक्, यजुः, साम) होती हैं। इसलिए ऋषियों के प्रायः सभी ग्रँथों में हमें ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्वेद लिखा होने के स्थान पर हमें सर्वत्र ऋक्, यजुः, साम ही लिखा देखने को मिलता है।
हनुमान् जी को श्री राम जी चारों वेदों का प्रकांड विद्वान मानते हैं।
अब श्री राम जी के विषय में देखें उनके विषय में वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के प्रथम सर्ग में देवर्षि नारदजी महर्षि वाल्मीकि जी से श्री राम को वेद वेदांग के तत्ववेत्ता कहते हैं। अर्थात् श्री राम जी वेद के कोई सामान्य विद्वान नहीं अपितु पूर्ण ज्ञानी थे। जो कि बिना पूर्ण योगी हुए संभव नहीं है।
श्री राम जी जैसा योगी जिस हनुमान जी के विषय में ऐसा कहता हो कि हनुमान् जी चारों वेदों के विद्वान हैं, अतः हनुमान् जी पूर्ण योगी थे, यह सिद्ध होता है।
अब देखते हैं कि क्या योगी आकाशगमन कर सकता है वा नहीं
योग दर्शन के विभूतिपाद के 39वें सूत्र में महर्षि पतंजलि जी लिखते हैं कि "संयम द्वारा उदान के जय होने से जल, कीचड़, कण्टकादि में पांव रखने से योगी के पांव का सङ्ग नहीं होता और ऊर्ध्वगमन भी होता है।"
उदान प्राण के विषय में महर्षि दयानंद सरस्वती जी ऋग्वेद १.२३.४ के भाष्य में लिखते हैं "ऊर्ध्वगमनबलहेतुः”
अर्थात् उदान प्राण ऊर्ध्व बल अर्थात् उत्क्षेपण बल पैदा करता है। यहां ऊर्ध्व बल का तात्पर्य है कि किसी कार्यरत बल के विरुद्ध बल उत्पन्न करना।
अर्थात् यदि हम उदान प्राण पर नियंत्रण कर लें तो हम शरीर में एक ऐसा बल प्राप्त कर लेंगे, जो gravitational force के विपरित दिशा में इससे बड़ा उत्पन्न हो जाएगा। इसके समक्ष gravitational force छोटा पड़ जाएगा। जिससे योगी जल पर भी चल लेगा, कीचड़ में भी चल लेगा, कांटे पर भी चल लेगा। कांटे की नोंक ऊपर होती है और gravitational force हमें नीचे खींचता है, जिससे हमें कांटा चुभता है, उदान प्राण पर नियंत्रण करने के कारण gravitational force के विपरित दिशा में इससे बड़ा बल उत्पन्न हो जाएगा जिससे कांटा नहीं चुभेगा।
योग दर्शन के विभूतिपाद के 42वें सूत्र में महर्षि पतंजलि जी ने योगी का आकाश मार्ग में गमन करना लिखा है।
यजुर्वेद 17.6 |
इसी प्रकार ऋषि ने यजुर्वेद १७.७८ में भी योगी का आकाशगमन कर सकता है, ऐसा भाष्य किया है
Bhai lekin ye kaise possible hai
ReplyDeletePadh kar gambhirta se vichar kigiye aapko swatah uttar mil jayega😊
Deleteअच्छा लेख है, परंतु बहुत सी अन्य शंकाये भी उपस्थित होती हैं, सुग्रीव और अंगद का वेदवित् और योगी होना कहीं भी नहीं लिखा, फिर भी वाल्मीकि रामायण के अनुसार दोनों उड़ सकते थे। देखिए निम्न प्रमाण -
ReplyDelete*🙏॥ओ३म्॥🙏*
*🌷सुग्रीव और अंगद का उड़ना🌷*
१. 👉 *सुग्रीव का रावण के पास से वापस उड़ जाना*
वाल्मीकि रामायण, युद्धकाण्ड, सर्ग ४०
एतस्मिन्नन्तरे रक्षो मायाबलमथात्मनः। आरब्धुमुपसम्पेदे ज्ञात्वा तं वानराधिपः ॥ २७ ॥ *उत्पपात तदाऽऽकाशं* जितकाशी जितक्लमः। रावणः स्थित एवात्र हरिराजेन वञ्चितः ॥ २८ ॥
- इसी बीच में राक्षस रावण ने अपनी मायाशक्ति से काम लेने का विचार किया। वानरराज सुग्रीव इस बात को ताड़ गये; इसलिये सहसा *आकाश में उड़ गये*। वे विजयोल्लास से सुशोभित होते थे और थकावट को जीत चुके थे। वानरराज रावण को चकमा देकर निकल गये और वह खड़ा-खड़ा देखता ही रह गय ॥ २७-२८ ॥
अथ हरिवरनाथः प्राप्तसंग्रामकीर्तिर्निशिचरपतिमाजौ योजयित्वा श्रमेण। *गगनमतिविशालं लङ्घयित्वा* अर्कसूनुर्हरिगणबलमध्ये रामपार्श्वं जगाम॥२९॥
- जिन्हें संग्राम में कीर्ति प्राप्त हुई थी, वे वानर राज सूर्यपुत्र सुग्रीव निशाचरपति रावण को युद्ध में थकाकर *अत्यन्त विशाल आकाशमार्ग का लङ्घन करके* वानरों की सेना के बीच श्रीरामचन्द्रजी के पास आ पहुँचे ॥ २९ ॥
२. 👉 *अंगद का रावण के पास संधिप्रस्ताव ले जाने के लिए उड़ना*
वाल्मीकि रामायण, युद्धकाण्ड, सर्ग ४१
इत्युक्तः तु तारेयो रामेणाक्लिष्टकर्मणा। *जगामाकाशमाविश्य* मूर्तिमानिव हव्यवाट् ॥७३॥
- अनायास ही महान् कर्म करनेवाले भगवान् श्रीराम के ऐसा कहने पर ताराकुमार अङ्गद मूर्तिमान् अग्नि की भाँति *आकाशमार्ग से चल दिये*॥ ७३॥
*सोऽतिपत्य मुहूर्तेन* श्रीमान् रावणमन्दिरम्। ददर्शासीनमव्यग्रं रावणं सचिवैः सह ॥ ७४ ॥
- श्रीमान् अङ्गद *एक ही मुहूर्त में परकोटा लाँघकर* रावण के राजभवन में जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने मन्त्रियों के साथ शान्तभाव से बैठे हुए रावणको देखा ॥ ७४ ॥
३. 👉 *अंगद का रावण के पास से वापस जाने पर उड़ना*
भङ्क्त्वा प्रासादशिखरं नाम विश्राव्य चात्मनः। विनद्य सुमहानादम् *उत्पपात विहायसा*॥९०॥
- इस प्रकार महल की छत तोड़कर उन्होंने अपना नाम सुनाते हुए बड़े जोर से सिंहनाद किया और *वे आकाशमार्ग से उड़ चले*॥ ९०॥
व्यथयन् राक्षसान् सर्वान् हर्षयंश्चापि वानरान् । स वानराणां मध्ये तु रामपार्श्वमुपागतः ॥ ९१ ॥
- राक्षसों को पीड़ा देते और समस्त वानरों का हर्ष बढ़ाते हुए वे वानरसेना के बीच श्रीरामचन्द्रजी के पास लौट आये ॥ ९१ ॥
आपकी शंका उचित है
Deleteवाल्मीकि रामायण किष्किंधा कांड सर्ग 65 में समुद्र तट पर अनेक वानर वर्ग के आर्य वीरों ने अपने अपने आकाशगमन के सामर्थ्यों का वर्णन किया है, जिसके श्लोक संख्या 19 में अंगद ने भी स्वयं के आकाशगमन के सामर्थ्य के बारे में बताया है।
आपका प्रश्न है कि उन्हें योगी या वेदज्ञ जैसे विशेषण नहीं दिया गया है तो इसका उत्तर है कि, आर्यों में राजा बनने की शर्त महर्षि मनु महाराज ने रखा था कि वह व्यक्ति क्षत्रिय (गुण, कर्म तथा स्वभाव से) होने से साथ ब्राह्मणों के तुल्य विद्वान होवे (द्रष्टव्य मनिस्मृत अध्याय 7 श्लोक 2), यही बात अथर्ववेद में भी बताई गई है, जिसे योगेश्वर श्री राम जैसा महापुरुष राजा बनाए हों तथा जिस अंगद को युवराज बनाए हों अवश्य ही वह भी योगी ही होगा, भले ही वह श्री राम और हनुमान जी जैसा महान योगी न हो तो क्या किंतु योगी अवश्य होगा। तथा दूसरी बात यह है कि उस काल के सभी आर्य जन योगी वा योगसाधक हुआ करते थे।
अब आपका प्रश्न हो सकता है कि राक्षस भी आकाशगमन करते थे तो इसका उत्तर है कि वे विमान से आकाशगमन किया करते थे अगर कहीं हनुमान् जी की तरह उन लोगों के "वायुमार्गे निरालम्बे" शब्द का प्रयोग किया गया है तो भी इसका उत्तर हमें योगदर्शन कैवल्य पाद के प्रथम सूत्र से मिल जाता है, महर्षि पतञ्जलि जी लिखते हैं -
जन्मौषधिमन्त्रतपःसमाधिजाः सिद्धयः।
आशा करता हूं आपको आपके प्रश्नों का उत्तर मिल गया होगा
धन्यवाद
किष्किंधा कांड में यह भी है कि सुग्रीव काम वासनाओं में लिप्त हो गए थे राजा बनने के बाद, अपनी भाभी तारा का भी उपभोग किया, इससे अंगद नाराज़ भी थे व समुद्र तट पर वे अन्य वानरों के सामने कहते भी है कि सुग्रीव दुष्ट और पापी है। अब इनको कैसा योगी माना जाए?
Deleteराक्षस विमानों में नहीं खुद भी उड़ते बताए हैं वाल्मीकि रामायण में, सीता हरण को आए रावण का विमान तो जटायु ने नष्ट कर दिया था, रावण सीता जी को खुद उठाकर आकाश मार्ग से ले गया बिना विमान के।
आप लोग कृपया अधूरी सूचना न दिया करें, लोग वाल्मीकि रामायण पढ़े नहीं होते, वे उम्मीद करते हैं कि आप लोग ठीक से पढ़कर उन्हें जानकारी दे रहे हैं, वे आप जैसे सोर्स से प्राप्त जानकारी को सत्य मान औरों से बहस करते हैं फिर विपक्ष का कोई ऐसी जानकारी जुटाकर बोलती बंद कर देता है, तब बुरा लगता है। मेरे साथ भी ऐसा हुआ, तब मैंने रामायण पढी व जाना कि हम जिनपर भरोसा करते हैं वे अपनी बात बड़ी करने के लिए आधी जानकारी देकर मूर्ख बना रहे होते है।
@Abhay श्री राम जी का किसी को ऐसे ही बिना उसकी योग्यताओं के राजा बना देंगे? अगर रावण बिना विमान के ही चला जाता तो उसे विमान लाने की आवश्यकता ही क्यों पड़ती? वाल्मीकि रामायण में मिलावट हुई है अतः ध्यानपूर्वक नीर क्षीर विवेक के द्वारा अध्ययन करो तभी कुछ समझ में आएगा
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