Posts

Showing posts from May, 2021

वैदिक पाठ्यक्रम

Image
इस लेख में हम पढ़ने-पढ़ाने का प्रकार लिखते हैं- प्रथम पाणिनिमुनिकृतशिक्षा जो कि सूत्ररूप है, उसकी रीति अर्थात् इस अक्षर का यह स्थान, यह प्रयत्न, यह करण है। जैसे 'प' इसका ओष्ठ स्थान, स्पृष्ट प्रयत्न और प्राण तथा जीभ की क्रिया करनी 'करण' कहाता है। इसी प्रकार यथायोग्य सब अक्षरों का उच्चारण माता, पिता, आचार्य सिखलावें। तदनन्तर व्याकरण अर्थात् प्रथम अष्टाध्यायी के सूत्रों का पाठ, जैसे 'वृद्धिरादैच्' [अष्टा० अ० १। पा० १। सू० १] फिर पदच्छेद जैसे 'वृद्धिः, आत्, ऐच्', पश्चात् समास 'आच्च ऐच्च आदेच्', फिर अर्थ–'आदैचां वृद्धिसंज्ञा क्रियते' आ, ऐ, औ की वृद्धि संज्ञा है। 'त: परो यस्मात्स तपरस्तादपि परस्तपरः'। तकार जिससे परे और जो तकार से भी परे हो, वह तपर कहाता है। इससे सिद्ध हुआ जो आकार से परे त् और त्कार से परे ऐच दोनों तपर हैं। तपर का प्रयोजन यह है कि ह्रस्व और प्लुत की वृद्धि संज्ञा न हुई। (नोट - अष्टाध्याई पढ़ने से पूर्व संस्कृत भाषा का ज्ञान अवश्य ले लें) उदाहरण 'भागः' यहाँ 'भज्' धातु से 'घञ्' प्रत्यय के परे '

आत्मा साकार या निराकार

Image
लेखक - यशपाल आर्य (जिन मित्रों ने प्रमाण खोजने में सहायता की है, हम उन सभी का धन्यवाद व आभार व्यक्त करते हैं) कुछ लोगों को भ्रम हो गया है कि आत्मा साकार होती है, आज हम इस पोस्ट में आर्ष प्रमाणों के आधार पर जानेंगे कि आत्मा साकार है या निराकार। तो आइए लेख को प्रारंभ करते हैं। सर्वप्रथम हम पंचावयव से अपनी बात सिद्ध करते हैं- प्रतिज्ञा - जीवात्मा निराकार है। हेतु - रूप से रहित होने से। जो जो वस्तुएं रूप, शक्ल से युक्त होती हैं, वे साकार होती हैं। उदाहरण - घड़ा उपनय - घड़े के तरह आत्मा में रूप गुण नहीं है। निगमन - अतः आत्मा निराकार है। अब हम आर्ष प्रमाण उद्धृत करते हैं- सत्यार्थ प्रकाश के 14वें समुल्लास में मं० ७| सि० ३०| सू० ७८| आ० २६|३४|३८ की समीक्षा में देखिए वहां पर महर्षि दयानंद जी रूह (आत्मा) को निराकार लिखते हैं महर्षि दयानंद जी ने पूना में प्रवचन दिया था उनमें से 15 प्रवचनों का संकलन उपदेश मंजरी नाम की पुस्तक में है। इसके प्रथम उपदेश में देखिए, यहां भी आत्मा को निराकार कहा है उपदेश मंजरी का चतुर्थ उपदेश भी देखिए उसमें भी आत्मा को निराकार कहा है महर्षि दयानन्द सरस्वती का पत्र-व

क्या श्री हनुमान् जी आदि बंदर थे या मनुष्य

Image
कई लोग ऐसा सोचते हैं कि श्री हनुमान जी आदि बंदर थे इस पोस्ट में हम इसी बात की समीक्षा करेंगे क्या वास्तव में हनुमान जी आदि बंदर थे या मनुष्य थे वाल्मीकि रामायण में जब श्री राम जी से श्री हनुमान जी मिलते हैं तो श्री राम जी श्री लक्ष्मण जी से हनुमान जी को वेदों के विद्वान बताते हैं। व्याकरण शास्त्र के ज्ञाता बताते हैं। वाल्मीकि रामायण किष्किंधा कांड तृतीय सर्ग अब आप बुद्धि से विचार करें क्या कोई बंदर वेदों का ज्ञानी हो सकता है, क्या बंदर शब्दों का एकदम सही तरीके से उच्चारण कर सकता है, कि उसके शब्दों के उच्चारण में एक भी गलती ना हो, व्याकरण के नियम मनुष्य के कंठ, मूर्धा आदि के अनुसार बने होते हैं न कि बन्दर के अब कुछ लोगों को शंका हो सकती है कि वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान जी को लांगूल थी, अगर वे मनुष्य होते तो लांगूल क्यों होती? यह हमें उचित तर्क जान पड़ता है किंतु थोडी गहराई से वाल्मीकि रामायण पढ़ने पर इसका भी उत्तर मिल जाता है रावण अपने दरबार में जब जब हनुमान जी को मारने की बात कहता है, तो विभीषण वहां पर दूत को मारना अनुचित बता कर कोई दूसरा दंड देने को कहते हैं, तो वहां पर हनुमान ज