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Showing posts from June, 2023

मनोज मुंतशिर के हनुमान् जी पर दिए गए विवादित वक्तव्य की समीक्षा | Scrutiny of Manoj Muntashir's controversial statement on Hanumān ji

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लेखक - यशपाल आर्य मनोज मुंतशिर जी एक बहुत विवादित वक्तव्य सामने आया जिसमें वे कह रहे हैं कि हनुमान् जी दार्शनिक बातें नहीं करते थे, वे भगवान् नहीं थे। हनुमान् जी के विषय में जो विवादित वक्तव्य दिया उससे शायद ही कोई वैदिक धर्मी सहमत होगा। हम प्रमाण के साथ आदरणीय मनोज जी के भ्रम का प्रीतिपूर्वक निवारण करना चाहेंगे। ऋष्यमूक पर्वत पर जब भगवान् श्रीराम को देखकर सुग्रीव जी को यह भ्रम हो जाता है कि कहीं ये वाली के भेजे तो नहीं न हैं तब हनुमान् जी सत्यता जानने हेतु जाते हैं और दोनों में वार्तालाप होती है। तत्पश्चात् भगवान् श्रीराम लक्ष्मण जी से कहते हैं- नानुग्वेदविनीतस्य नायजुर्वेदधारिणः। नासामवेदविदुषः शक्यमेवं विभाषितुम्।।२८।। नूनं व्याकरणं कृत्स्नमनेन बहुधा श्रुतम्। बहु व्याहरतानेन न किंचिदपशब्दितम्।।२९।। न मुखे नेत्रयोश्चापि ललाटे च भ्रुवोस्तथा। अन्येष्वपि च सर्वेषु दोषः संविदितः क्वचित्।।३०।। अविस्तरमसंदिग्धमविलम्बितमव्यथम्। उरःस्थं कण्ठगं वाक्यं वर्तते मध्यमस्वरम्।।३१।। संस्कारक्रमसम्पन्नामद्भुतामविलम्बिताम्। उच्चारयति कल्याणीं वाचं हृदयहर्षिणीम्।।३२।। अनया चित्रया वाचा त्रिस्थानव्यञ्जन

वैदिक संध्या : द्विकालीय या त्रिकालीय? | vaidika saṃdhyā : dvikālīya yā trikālīya?

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लेखक - यशपाल आर्य आर्ष मतानुसार प्रतिदिन संध्या दो बार करनी चाहिए या तीन बार, इस विषय में विवाद चलता रहा है। इस विषय में सत्य पक्ष समझने हेतु हम आर्ष प्रमाण देखते हैं, ऋषियों के साक्षात्कृतधर्मा होने उनके प्रमाण स्वीकार करना चाहिए। सर्वप्रथम हम यजुर्वेदीय संध्या में संध्या का अर्थ देखते हैं- यहां लिखा है कि प्रातः और सायं के संध्या के काल में ही संध्या करनी चाहिए। इस पांडुलिपि पर हमने विस्तृत लेख लिखा है, पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें 👉 वैदिक पूजा पद्धति (यजुर्वेदीय संध्या की दुर्लभ पांडुलिपि पर आधारित) षड्विंश ब्राह्मण ५.५.४ में भी प्रातः व सायं दो ही काल में संध्या करने का विधान है, सायण ने भी यही स्वीकार किया है - भगवान् मनु भी दो ही काल के संध्या का विधान व फल का वर्णन करते हैं- मनु० २.१०१,१०२ लौगाक्षि गृह्यसूत्र १.२६ देखें- तैत्तिरीय आरण्यक का प्रमाण देखें - अर्थात् जब सूर्य के उदय और अस्त का समय आवे, उसमें नित्य प्रकाशस्वरूप, आदित्य परमेश्वर को उपासना करता हुआ ब्रह्मोपासक मनुष्य ही सम्पूर्ण सुख को प्राप्त होता है । पूर्वपक्ष - तैत्तिरीय आरण्यक में त्रिकालीय संध्या का प्