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Showing posts from April, 2023

वेदसंज्ञा विचार | Ved Saṃjñā Vicāra

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वेद संज्ञा किनकी है? उत्तर है मंत्र संहिताओं का। अब प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या केवल शाकल आदि चार संहिताओं का जिन्हें मूल वेद माना जाता है उन्हीं का नाम वेद है या उससे अतिरिक्त जो शाखाएं हैं उनके वे भी मंत्र वेद हैं जो चार संहिताओं में नहीं प्राप्त होते? यह बहुत गंभीर विषय है, जिस पर विचार करना आवश्यक है। हम आप्त पुरुषों के मतानुसार इस विषय का विवेचन करेंगे। आप्त पुरुष के वचन को प्रमाण क्यों माना जाए, इसका उत्तर भगवान् वात्स्यायन ने बहुत अच्छे शब्दों में दिया है- एतेन त्रिविधेनातप्रामाण्येन परिगृहीतोऽनुष्ठीयमानोऽर्थस्य साधको भवति, एवमाप्तोपदेशः प्रमाणम्। एवमाप्ताः प्रमाणम्। [न्याय दर्शन २/१/६९ महर्षि वात्स्यायन भाष्य] इस प्रकार वास्तविक विषय का ज्ञान, प्राणियों पर दया तथा सत्य विषय के प्रसिद्ध करने की इच्छा इन तीन प्रकार से आप्तपुरुषों के प्रमाण होने से संसार के साधारण प्राणियों ने आप्तों के उपदेश के अनुसार स्वीकार कर, वैसा ही आचरण करने से उनके सम्पूर्ण संसार के कार्य सिद्ध होते हैं, इस प्रकार आप्तों का उपदेश प्रमाण होता है। और आप्त भी प्रमाण होता है अर्थात् आप्त का जीवन भी प्रमाण ह...

वैदिक पूजा पद्धति | Vaidic Pūjā Paddhati

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अनेक लोगों को यह जिज्ञासा होती है कि महर्षि दयानन्द ने जो संध्या विधि बनाई है, उसमें मंत्रों को उन्होंने स्वयं के अनुसार रखा है या ऋषियों के अनुसार? अगर ऋषियों के अनुसार रखा है तो क्या प्रमाण है? हम यह स्पष्ट कर दें कि महर्षि दयानन्द ने इस विषय में जो भी लिखा है वह उन्होंने ऋषियों का ही अनुसरण किया है। महर्षि ने जो भी संध्या विधि बताई है ,वह ऋषि लोगों की परंपरा से प्राप्त है। हम यह दावा स्वयं ही नहीं कर रहे अपितु इस लेख में इस बात का प्रमाण भी देंगे। कविकुलगुरु कालिदास विश्वविद्यालय के Ms. No. 354 में हमें यजुर्वेदीय संध्या नाम से एक पांडुलिपि प्राप्त हुई, उसमें जो संध्या विधि और मंत्र हैं, लगभग वही महर्षि दयानन्द जी द्वारा बनाई हुई संध्या विधि में भी हैं। अब हम दोनों का तुलनात्मक विश्लेषण करते हैं। सर्वप्रथम हम संस्कार विधि के अन्तर्गत बताई संध्या को देखेंगे फिर यजुर्वेदीय संध्या की पांडुलिपि देखेंगे और तुलना करेंगे कि दोनों में कितनी समानता व असमानता है। पञ्चमहायज्ञविधि के अन्तर्गत संध्योपासना विधि यजुर्वेदीय संध्या मनुस्मृति का श्लोक दोनों में ही प्रमाण के रूप में उपयोग किया गया...