वेदसंज्ञा विचार | Ved Saṃjñā Vicāra
वेद संज्ञा किनकी है? उत्तर है मंत्र संहिताओं का। अब प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या केवल शाकल आदि चार संहिताओं का जिन्हें मूल वेद माना जाता है उन्हीं का नाम वेद है या उससे अतिरिक्त जो शाखाएं हैं उनके वे भी मंत्र वेद हैं जो चार संहिताओं में नहीं प्राप्त होते? यह बहुत गंभीर विषय है, जिस पर विचार करना आवश्यक है। हम आप्त पुरुषों के मतानुसार इस विषय का विवेचन करेंगे। आप्त पुरुष के वचन को प्रमाण क्यों माना जाए, इसका उत्तर भगवान् वात्स्यायन ने बहुत अच्छे शब्दों में दिया है- एतेन त्रिविधेनातप्रामाण्येन परिगृहीतोऽनुष्ठीयमानोऽर्थस्य साधको भवति, एवमाप्तोपदेशः प्रमाणम्। एवमाप्ताः प्रमाणम्। [न्याय दर्शन २/१/६९ महर्षि वात्स्यायन भाष्य] इस प्रकार वास्तविक विषय का ज्ञान, प्राणियों पर दया तथा सत्य विषय के प्रसिद्ध करने की इच्छा इन तीन प्रकार से आप्तपुरुषों के प्रमाण होने से संसार के साधारण प्राणियों ने आप्तों के उपदेश के अनुसार स्वीकार कर, वैसा ही आचरण करने से उनके सम्पूर्ण संसार के कार्य सिद्ध होते हैं, इस प्रकार आप्तों का उपदेश प्रमाण होता है। और आप्त भी प्रमाण होता है अर्थात् आप्त का जीवन भी प्रमाण ह...