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Showing posts from March, 2023

श्रीराम और समुद्र संवाद का सच | The truth of Shriram and Sea conversation

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लेखक - यशपाल आर्य भगवान् श्रीराम रावण के वध के लिए सेना के साथ लंका की ओर प्रस्थान करते हैं, तो लंका में प्रवेश करने के लिए उन्हें समुद्र को पार करना होता है। अब प्रश्न उपस्थित होता है कि समुद्र को कैसे पार किया जाए क्योंकि बिना समुद्र को पार किए लंका तक नहीं किया जा सकता। वर्तमान में प्रचलित रामायण में ऐसा आता है भगवान् श्रीराम यह सोचकर कि या तो मैं समुद्र पार करूंगा या तो समुद्र मेरे द्वारा सुखा दिया जाएगा, तीन दिन तक उसके किनारे कुश को बिछा कर व्यतीत करते हैं किन्तु तब भी समुद्र वैसा ही रहता है। ऐसा देखकर भगवान् श्रीराम को बहुत क्रोध आता है और धनुष हाथ में लेकर वे समुद्र में बाण चला कर उसे विक्षुब्ध कर देते हैं। दोबारा बाण छोड़ने के लिए लक्ष्मण जी मना करते हैं लेकिन फिर भी भगवान् श्रीराम का क्रोध शान्त नहीं होता। तब समुद्र स्वयं प्रकट होकर आता है और उन्हें समुद्र पर पुल बांधने का सलाह देता है, इसपर भगवान् श्रीराम बोलते हैं कि मेरा बाण अमोघ है अतः इसे किसपर प्रयोग किया जाए? इसपर समुद्र कहता है मेरे उत्तर की ओर द्रुमकुल्य देश में पापी, दस्यु आभीर निवास करते हैं उनपर चला दीजिए। भगवान्

क्या महर्षि दयानन्द ने मनुस्मृति में ब्रह्मावर्त के स्थान पर आर्यावर्त पाठ मिलावट कर दिया? | Brahmavarta or Aryavarta : What Is The Text In Manusmriti | Critical Analysis of Manusmriti

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लेखक - यशपाल आर्य अनेक लोग यह आक्षेप लगाते हैं कि महर्षि दयानन्द जी ने मनुस्मृति में मिलावट कर दिया, जो ऋषि दयानंद ग्रंथों में प्रक्षेप होना स्वीकार करते थे वे तो स्वयं ही ग्रंथों में प्रक्षेप करते थे आदि। उन्होंने ब्रह्मावर्तं को हटा कर आर्यावर्तं पाठ अपने मन से मिला दिया। इसपर कुछ लोगों की शंका होती है कि महर्षि ने कहा था कि मेरी भी जो त्रुटि हो जाए उसे विद्वान् जन सुधार लेवें तो क्या इसे ऋषि की त्रुटि मान कर इसका सुधार कर लेना चाहिए? पण्डित भगवद्दत्त जी, पण्डित युधिष्ठिर जी मीमांसक आदि आर्य विद्वानों ने भी यही माना है कि यहां ऋषि से त्रुटि हो गई है। हम इन विद्वानों की विद्या को नमन करते हुए यह कहना चाहते हैं यहां समस्त आर्य विद्वानों से यहां भी भूल हो गई है कि मनुस्मृति में ब्रह्मावर्तं ही पाठ मिलता है, आर्यावर्तं नहीं है। मोहनचंद्र जी आर्य यहां लिखते हैं कि ऋषि के पास जो मनुस्मृति थी उसमें आर्यावर्तं ही पाठ था और वह आज भी परोपकारिणी के पुस्तकालय में है। अब हम एक दुर्लभ शोध बताने वाले हैं, जिसके बारे में आप नहीं जानते होंगे। Patrick Olivelle ने मनुस्मृति की अनेक पांडुलिपियों के

सत्त्व रज तम गुण या कण | Are Satwa Raj Tam Properties Or Particles?

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लेखक - यशपाल आर्य कुछ विद्वान् जनों का मत कि सत्व रज व तम कण हैं गुण नहीं। उनके अनुसार सत्वादि तीन कणों के समुच्चय का नाम प्रकृति है। वस्तुतः यह मत मानना सत्य नहीं है। कण मानने पर प्रश्न यह उठता है कि इनके गुण क्या हैं, तो उत्तर दिया जाता है- प्रीत्यप्रीतिविषादाद्यैर्गुणानामन्योऽन्यं वैधर्म्यम्।। (सांख्य १.१२७) प्रकाशशीलं सत्वं क्रियाशीलं रजः स्थितिशीलं तमः इति। एते गुणाः... (योगदर्शन व्यास भाष्य साधनपाद - १८) प्रीति, अप्रीति, विषाद, प्रकाशशीलता आदि को सत्वादि के गुण हैं, ऐसा कल्पित कर लिया जाता है। यह अवधारणा वैदिक सिद्धांतों के विपरीत है। इस अवधारणा को प्रस्तुत करने हेतु जो प्रमाण प्रस्तुत किए जाते हैं वे इस अवधारणा के ठीक विपरीत सिद्ध होते हैं। ऊपर दिए दोनों प्रमाणों में सत्व आदि को ही गुण कहा है न कि प्रीति, अप्रीति, विषाद, प्रकाशशीलता आदि को। वेद व आर्ष ग्रंथों का कथन है- अनादि नित्यस्वरूप सत्त्व, रज और तमोगुणों की एकावस्थारूप प्रकृति से उत्पन्न जो परमसूक्ष्म पृथक्-पृथक् वर्तमान तत्त्वावयव विद्यमान हैं, उन्हीं का प्रथम ही जो संयोग का आरम्भ है, और संयोग विशेषों से अवस्थान्तर दूसरी-