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Showing posts from October, 2022

भगवान् श्रीराम का अयोध्या पुनरागमान कब और इसका दीपावली से संबंध?

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लेखक - यशपाल आर्य आज समाज में ऐसी मान्यता है कि भगवान् राम दीपावली के दिन ही अयोध्या आए थे इसीलिए अयोध्यावासी आज के दिन नगर को सजाने हेतु दीपक जलाए थे तबसे ही दीपावली मनाई जाती है। आज हम वाल्मीकि रामायण से जानेंगे कि भगवन् राम अयोध्या कब आए थे? भगवान् राम के पिता महाराज दशरथ जी उनके युवराज पद देने के विषय में कहते हैं- वाल्मीकि रामायण सर्ग 3 श्लोक 4 (गीता प्रेस) अब अन्य संस्करणों से देखें- अयोध्याकाण्ड सर्ग 5 श्लोक 4 (पश्चिमोत्तर संस्करण) अयोध्याकांड सर्ग 2 श्लोक 4 (बंगाल संस्करण) अयोध्याकांड सर्ग 3 श्लोक 4 (Critical edition) यहां स्पष्ट है कि भगवान् राम का युवराज बनना चैत्र मास में निश्चित हुआ था। आगे सर्ग ४ के श्लोक २२ से पता चलता अगले ही दिन उनका राज्याभिषेक होना था जबकि युवराज बनने के स्थान पर अगले ही दिन कैकेई के कारण उन्हें वनवास प्राप्त हुआ। जिस दिन राज्याभिषेक होना होता है उसी दिन कैकेई ने वनवास की गणना उसी दिन से आरंभ हो जाती है, इस विषय में सुमंत्र का यह कथन देखें- अयोध्याकांड सर्ग 40 श्लोक 12 (गीता प्रेस) महाराज दशरथ की मृत्यु के बाद जब भरत जी को पूरी बात पता चलती है तो वे

क्या महर्षि कपिल, कणाद व गोतम नास्तिक थे? (Were Maharshi Kapil, Kaṇāda and Gotam atheist?)

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लेखक - यशपाल आर्य महर्षि कपिल के नास्तिक होने की समीक्षा कुछ लोग ऐसा दोषारोपण करते हैं कि महर्षि कपिल निरीश्वरवादी थे तथा सांख्य दर्शन नास्तिक दर्शन है, वे लोग अपने इस मत की पुष्टि हेतु सांख्य के अनेक सूत्रों का अर्थ का अनर्थ करते हैं। इसमें सबसे अधिक प्रसिद्ध “ईश्वरासिद्धेः।।” [सां. द. १.९२] सूत्र है। हम सर्वप्रथम इसी सूत्र पर विचार करेंगे व इसकी सत्यता जानने का प्रयास करेगें। इस सूत्र को समझने के लिए इससे दो पूर्व के सूत्रों से इसके पश्चात के दो सूत्रों को देखें तब इस सूत्र का वास्तविक अर्थ पता चालेगा। वे सूत्र इस प्रकार हैं- यत्सम्बद्धं सत्तदाकारोल्लेखि विज्ञानं तत्प्रत्यक्षम्।।८९।। योगिनामबाह्यप्रत्यक्षत्वान्न दोषः।।९०।। लीनवस्तुलब्धातिशयसम्बन्धाद्वादोषः।।९१।। ईश्वरासिद्धेः।।९२।। मुक्तबद्धयोरन्यतराभावान्न तत्सिद्धिः।।९३।। उभयथाप्यसत्करत्वम्।।९४।। (सांख्य दर्शन प्रथम अध्याय) यहां भगवान् कपिल प्रत्यक्ष का लक्षण बताते हुए कहते हैं आत्मा के साथ जिस किसी भी वस्तु के साक्षात सम्बंध से प्राप्त होने वाला और उस वस्तु के स्वरूप को प्रकट करने वाला जो ज्ञान है वह प्रत्यक्ष प्रमाण कहलात