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Showing posts from March, 2022

कौन कहता है वैदिक धर्म में बालविवाह की आज्ञा है?

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लेखक - यशपाल आर्य इस लेख के अधिकांश प्रमाण महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने ही दिया है अतः हम उनका सादर आभार व्यक्त करते हुए व अपने उन सभी मित्र महानुभावों का भी धन्यवाद व्यक्त करते हुए जिन्होंने इस लेख को लिखने में हमारी सहायता की है, हम लेखनी का आरंभ करते हैं। आपने देखा होगा कि कुछ कथित बुद्धिजीवी ऐसा आक्षेप लगाते हुए मिल जायेंगे कि सनातन धर्म में बालविवाह होता था, अतः आज हम इस लेख में उन्हीं लोगों की समीक्षा करेंगे। विवाह किस आयु में करना चाहिए, यह आयुर्वेद का विषय है अतः हम सर्वप्रथम आयुर्वेद का ही प्रमाण देखते हैं-  उचित समय से न्यून आयुवाले स्त्री-पुरुष को गर्भाधान के लिए मुनिवर धन्वन्तरि जी निषेध करते हुए कहते हैं- ऊनषोडशवर्षायामप्राप्तः पञ्चविंशतिम्।  यद्याधत्ते पुमान् गर्भ कुक्षिस्थः स विपद्यते॥ जातो वा न चिरञ्जीवेज्जीवेद्वा दुर्बलेन्द्रियः। तस्मादत्यन्तबालायां गर्भाधानं न कारयेत्॥ [सुश्रुतसंहिता, शारीरस्थान, अ० १०। श्लोक ४७, ४८]  अर्थात् सोलह वर्ष से न्यून वयवाली स्त्री में, पच्चीस वर्ष से न्यून आयुवाला पुरुष जो गर्भ का स्थापन करे तो वह कुक्षिस्थ हुआ गर्भ विपत्ति को प्राप्त होता अ

क्या रामायण में बुद्ध का उल्लेख है | Reality of the word Buddha appearing in Ramayana

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लेखक - यशपाल आर्य कई लोग ऐसा दावा करते हैं कि रामायण में बौद्धों को दंडनीय कहा है इसलिए सिद्ध है कि रामायण बुद्ध के बाद लिखी गई । आज हम इसी दावे की समीक्षा करेंगे। सर्वप्रथम हम वह प्रसंग देखते हैं। प्रसंग इस प्रकार है कि जब भरत जी राम जी को वापस लाने हेतु वन में जाते हैं किंतु राम जी अपनी बात पर दृढ़ रहते हैं तो उसमें जाबालि व श्रीराम जी का संवाद होता है, उसी में बुद्ध शब्द आया है। अयोध्याकांड सर्ग १०९ के श्लोक ३४ [गीताप्रैस गोरखपुर] में बुद्ध शब्द आया है, अब इसके कुछ श्लोक पूर्व से कुछ श्लोक बाद तक देखें- कर्मभूमिमां प्राप्य कर्तव्यं कर्म यच्छुभम्। अग्निर्वायुश्च सोमश्च कर्मणां फलभागिनः।।२८।। शतं क्रतूनामाहृत्य देवराट् त्रिदिवं गतः। तपांस्युग्राणि चास्थाय दिवं याता महर्षयः।।२९।। अमृष्यमाणः पुनरुग्रतेजाः निशम्य तं नास्तिकवाक्यहेतुम्। अथाब्रवीत्तं नृपतेस्तनूजो विगर्हमाणो वचनानि तस्य।।३०।। सत्यं च धर्मं च पराक्रमं च भूतानुकम्पां प्रियवादितां च। द्विजातिदेवातिधिपूजनं च पन्थानमाहुस्त्रिदिवस्य सन्तः।।३१।। तेनैवमाज्ञाय यथावदर्थमेकोदयं सम्प्रतिपद्य विप्राः। धर्मं चरन्त स्सकलं यथावत्काङ्क्षन्त