Posts

Showing posts from January, 2022

क्या माता सीता की उत्पत्ति धरती से हुई थी?

Image
लेखक - यशपाल आर्य माता सीता जी के विषय में आज समाज में एक भ्रांति है कि उनकी उत्पत्ति पृथ्वी से हुई थी। यह बात वाल्मीकि रामायण बालकांड सर्ग 66 के श्लोक 13 व 14 में भी आई है। वहां इस प्रकार है कि जनक जी हल से यज्ञ के लिए जमीन को समतल कर रहे थे तो उन्हें पृथ्वी में पृथ्वी से उत्पन्न एक कन्या मिली। अब इसपर विचार करते हैं कि क्या यह बात मौलिक है या प्रक्षिप्त है। विचार करने पर दो मुख्य बिंदु उपस्थित होते हैं - १. जनक जी राजा थे तो भूमि वे क्यों समतल करेंगे अपितु भूमि तो समतल उनके सेवकगण करेंगे। २. यदि जमीन से आदि सृष्टि के बाद भी मनुष्योत्पत्ति होती है आज भी होनी चाहिए थी और उस काल में भी अनेक लोग धरती से उत्पन्न होते लेकिन ऐसा कुछ नहीं दिखता। तो इन दो बिंदुओं पर गंभीरता पूर्वक विचार करने से यह पता चलता है कि सीता जी के जन्म की जो कथा यहां है व समाज में भी प्रचलित है वह मिथ्या है। अब कुछ लोग द्वितीय बिंदु पर आक्षेप लगाना शुरू करेंगे कि आदि सृष्टि में मनुष्य की उत्पत्ति धरती से कैसे हो सकती है। वे लोग evolution से मनुष्य की उत्पत्ति मानते हैं, यहां विषय न होने के कारण हम theory of evolution

वेद पर ऋषियों का मत

Image
लेखक - यशपाल आर्य ऋषि लोग वेदों के विषय में क्या विचार रखते थे इस बात को हम प्रमाणों के आधार पर इस लेख में जानेंगे। आइए लेख प्रारंभ करते हैं - मनुस्मृति का प्रमाण वेदोऽखिलो धर्ममूलं स्मृतिशीले च तद्विदाम्। आचारश्चैव साधूनां आत्मनस्तुष्टिरेव च। [मनु० २|६] अर्थात् वेद का वचन, वेदज्ञाताओं का वचन, कर्म, साधारण लोगों का कर्म और वह कर्म जिसके करने में चित्त शान्त हो, यह सब धर्म के मूल हैं। धर्मं जिज्ञासमानानां प्रमाणं परमं श्रुतिः ।। [मनु० २/१३] जिसको धर्म जानने की इच्छा है, उसको केवल वेद ही परम प्रमाण हैं। 12वें अध्याय में कहते हैं - पितृदेवमनुष्याणां वेदश्चक्षुः सनातनम्। अशक्यं चाप्रमेयं च वेदशास्त्रं इति स्थितिः।।९४।। पितर=पालक राजा आदि विद्वान् और अन्य मनुष्यों का वेद सनातन नेत्र=मार्ग-प्रदर्शक है, और वह अशक्य अर्थात् जिसे कोई पुरुष नहीं बना सकता इस प्रकार अपौरुषेय हैं, तथा अनन्त सत्यविद्याओं से युक्त है, ऐसी निश्चित मान्यता है। या वेदबाह्याः स्मृतयो याश्च काश्च कुदृष्टयः। सर्वास्ता निष्फलाः प्रेत्य तमोनिष्ठा हि ताः स्मृताः।।९५।। जो वेदविरोधी स्मृतियां और जो भी कोई कुत्सित पुरुषों के बन