हनुमान् जी लंका कैसे गए
लेखक - यशपाल आर्य हनुमान जी लंका उड़ कर गए या तैर कर इस विषय को जानने के लिए हमें वाल्मीकि रामायण का गंभीरता से अध्ययन करना होगा, क्योंकि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी के समकालीन महर्षि वाल्मीकि जी हुए थे वाल्मीकि रामायण के सुंदर काण्ड के प्रथम सर्ग के श्लोक संख्या 68, 69 में जो वर्णन आया है वह तैरने का है और वाल्मीकि रामायण के सुंदर काण्ड के प्रथम सर्ग के श्लोक संख्या 77, 78 में जो वर्णन आया है वह उड़ने का है वाल्मीकि रामायण के सुन्दरकाण्ड प्रथम सर्ग के श्लोक 211 व 212 में श्री हनुमान् जी के लंका प्रवेश से जुड़े दो श्लोकों में ‘निपपात’ शब्द का प्रयोग किया गया है इन दोनों श्लोकों में ‘निपपात’ शब्द से यह स्पष्ट होता है कि वे आकाश मार्ग से समुद्र के किनारे स्थित पर्वत पर उतर गये। यदि वे वहाँ तैर रहे होते, तो ‘निपपात’ पद का प्रयोग नहीं होता, बल्कि वहाँ समुद्र तल से पर्वत के ऊपर चढ़ने का वर्णन होता, जबकि कहीं भी चढ़ने का वर्णन नहीं, इससे भी हनुमान् जी का उड़ना सिद्ध होता है। अर्थात् वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान् जी उड़े भी थे और तैरे भी। अब विचार करते हैं क्या कोई उड़ सकता है हनुमान् ज