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Showing posts from July, 2023

रवीन्द्राचार्य जी का वेदसंज्ञाविचार विषयक भ्रमोच्छेदन | Ravindracharya's bhramocchedana on vedasaṃjñāvicāra

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लेखक - यशपाल आर्य हमने वेदसंज्ञा विचार नाम से एक लेख लिखा जिसके विरुद्ध श्री रवीन्द्राचार्य जी ने वीडियो बनाया व परोपकारी पत्रिका के जुलाई 2023 के प्रथम अङ्क में लेख लिखा। दोनों में एक ही तर्क हैं। इनके तर्क व प्रमाणों के परीक्षणार्थ और सत्य के निर्णय हेतु हम इनके आक्षेपों का उत्तर देने हेतु यह लेख लिख रहे हैं। हमारे वेदसंज्ञा विचार नामक लेख पढ़ने हेतु इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं- https://aryaresearcher.blogspot.com/2023/04/veda-samjna-vicara.html श्री रवीन्द्राचार्य जी लिखते हैं कि मैंने (श्री रवीन्द्राचार्य) कमेंट सेक्शन में शास्त्रार्थ हेतु आमंत्रित किया किंतु उत्तर नहीं आया। उत्तर - आप इस गौण विषय को लेख में स्थान देंगे हमें ऐसी आशा नहीं थी। अस्तु! हमें व्यर्थ में इसपर विवाद करके लेख का कलेवर नहीं बढ़ाना है, इस आक्षेप का उत्तर हम अत्यंत संक्षेप रूप से देते हैं। आपने अपना परिचय नहीं दिया, ऐसे ही कोई भी आकर शास्त्रार्थ हेतु कहे तो क्या हम खाली बैठे हैं जो हर एक से शास्त्रार्थ करें? हां, जो विद्वान् हों उनसे अवश्य प्रीतिपूर्वक वाद कर सकते हैं। यदि आपको वाद करना ही था तो टेलीग्र

वाल्मीकि रामायण के विभिन्न संस्करण | Different Recensions of Vālmīki Rāmāyaṇa

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लेखक - यशपाल आर्य पश्चिमी संस्करण (बॉम्बे संस्करण) व दाक्षिणात्य संस्करण (कुम्भकोणम् संस्करण) निर्णय सागर प्रेस (१८८८) और गुजराती प्रिंटिंग प्रेस (१९१२-१९२०) से पश्चिमी संस्करण प्रकाशित हुआ है। यह रामायण का सर्वत्र प्रचलित पाठ है अतः इसे Vulgate edition नाम से जाना जाता है। रामायण के अधिकांश प्रकाशक इसी पाठ को प्रकाशित करते हैं। बॉम्बे व कुम्भकोणम् संस्करण में सर्गों की संख्या लगभग समान है और लगभग २२३ छंदों का अंतर है। बॉम्बे व कुम्भकोणम् संस्करणों में लगभग समान पाठ होने से सामान्यतः यह माना जाता है कि पश्चिमी क्षेत्र का कोई स्वतंत्र पाठ नहीं है। किन्तु ऐसा नहीं है, पश्चिमी भारत की पांडुलिपियों में पश्चिमोत्तर व दाक्षिणात्य दोनों संस्करणों की विशेषताओं और कुछ विशिष्टताओं को प्रदर्शित करते हैं। यह अप्राकृतिक नहीं है, क्योंकि देवनागरी लिपि सर्वव्यापी होने के कारण लगभग सभी संस्करणों का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम है। गीता प्रेस बॉम्बे संस्करण प्रकाशित करता है। किन्तु हमारे पास उपलब्ध गीता प्रेस के छियालीसवें पुनर्मुद्रण (संवत् २०७१) में इसे दाक्षिणात्य पाठ माना गया है, वस्तुतः पश्चिमी पाठ