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Showing posts from December, 2022

कौन कहता है भगवान् श्रीराम ने छुपकर वाली का वध किया

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लेखक - यशपाल आर्य अनेक लोग यह कहते हैं कि भगवान् राम कायरों की भांति छुप कर वाली का वध किया, जो वीर होते तो छुप कर वध क्यों करते? वस्तुतः ऐसे आक्षेप लगाने वाले रामायण को न तो गंभीरता पूर्वक पढ़ते हैं और न ही पढ़कर उन श्लोकों पर तर्क से विचार करते हैं। वाली वध का सत्य जानने हेतु हम इस प्रसंग पर विचार करते हैं। जब सुग्रीव भगवान् राम के समक्ष वाली के पराक्रम का वर्णन करते हैं तो वे कहते हैं- एतदस्यासमं वीर्ये मया राम प्रकाशितम्। कथं तं वालिनं हन्तुं समरे शक्ष्यसे नृप।। [वाल्मीकि रामायण किष्किंधा कांड सर्ग ११ श्लो. ६८, गीता प्रेस] अर्थात् श्रीराम! मैंने वाली के अनुपम पराक्रम को प्रकाशित किया है। नरेश्वर! आप उस वाली को संग्राम में कैसे मार सकेंगे? अब हम अन्य संस्करणों से भी इस श्लोक को देखते हैं- (दाक्षिणात्य पाठ किष्किंधा कांड सर्ग ११ श्लोक ७०) (पश्चिमोत्तर पाठ किष्किंधा कांड सर्ग ८ श्लोक ४४) (बंगाल पाठ किष्किंधा कांड, सर्ग ९ श्लोक ९०) (Critical edition किष्किंधा कांड सर्ग ११ श्लोक ४८) यहां सुग्रीव ने स्पष्ट रूप से यह प्रश्न पूछा कि आप युद्ध में उसे कैसे मारेंगे? इसी प्रकार आगे सुग्रीव भगव

आचार्य चाणक्य का मंडल सिद्धान्त

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लेखन - सचिन चौहान कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में 4 मंडलों का उल्लेख किया है- विजिगीषुमित्रं मित्रमित्रं वास्य प्रकृतयस्तिस्रः ॥ ३२ ॥ ताः पञ्चभिरमात्यजनपद दुर्गकोशदण्डप्रकृतिभिरेकैकश: संयुक्ता मण्डलमष्टादशकं भवति।।३३।। अर्थशास्त्र 6.2.32,33 अब चार मण्डलोंका संक्षेप में निरूपण करते हैं:- विजिगीषु, उसका मित्र और मित्रमित्र ये तीन प्रकृति हैं॥३२॥ इनमेंसे एक २ अलहदा २ अमात्य जनपद दुर्ग कोश और दण्ड इन पांच प्रकृतियोंके साथ मिलकर (अर्थात् एक विजिगीषु और उसकी अमात्य आदि पांच प्रकृतियां ६. ये सब मिलकर) अठारह अवयव वाला एक मण्डल बन जाता है। इसे विजिगीषु सम्बन्धी मण्डल कहते हैं (इस प्रकार अन्य भी समझ लेने चाहिए ॥ ३३ ॥ प्रथम मंडल- इसमें स्वयं विजिगीषु(राजा), उसका मित्र, उसके मित्र का मित्र शामिल है। द्वितीय मंडल- इस मंडल में विजिगीषु का शत्रु शामिल होता है, साथ ही विजिगीषु के शत्रु का मित्र और शत्रु के मित्र का मित्र सम्मिलित किया जाता है। तृतीय मंडल- इस मंडल में मध्यम, उसका मित्र एवं उसके मित्र का मित्र शामिल किया जाता है। चतुर्थ मंडल- इस मंडल में उदासीन, उसका मित्र और उसके मित्र का मित्र शामिल किया ज

कौन कहता है वेदों में अनित्य इतिहास है?

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लेखक - यशपाल आर्य इस लेख को लिखने में जिन मित्रों ने सहायता की है हम उन सबके आभार व्यक्त करते हुए लेख को आरंभ करते हैं। आज अनेक लोग ऐसा मानते हैं कि वेदों में इतिहास है। वे लोग अपनी कल्पना सिद्ध करने हेतु कुछ वेद मंत्रों को भी उद्धृत करते हैं। ऐसे लोगों के मतानुसार वेद कोई ऐतिहासिक ग्रन्थ है, जिसमें इतिहास भरा हुआ है। कोई अर्जुन का का नाम दिखा देता है, कोई परीक्षित को वेद से सिद्ध करने लगता है, तो कोई इन्द्र वृत्रासुर की कथा दिखा कर यह सिद्ध करने का प्रयास करता है कि वेदों में इतिहास है। क्या वास्तव में वेदों में इतिहास है या जिसे हम इतिहास मान रहे हैं वह हमारी भूल है और जिसे हम इतिहास समझ रहे हैं उसका अर्थ ही भिन्न है। इस विषय को जानने हेतु हम सर्वप्रथम ऋषियों के प्रमाण देखेंगे, क्योंकि वे लोग वेदों के साक्षात्कृतधर्मा थे। ऐसे लोगों का ही प्रमाण मान्य होता है जो आप्त हो। आप्त का वचन प्रमाण होता है क्योंकि— एतेन त्रिविधेनातप्रामाण्येन परिगृहीतोऽनुष्ठीयमानोऽर्थस्य साधको भवति, एवमाप्तोपदेशः प्रमाणम्। एवमाप्ताः प्रमाणम्। [न्याय दर्शन २/१/६९ महर्षि वात्स्यायन भाष्य] इस प्रकार वास्तविक विषय