पुत्रेष्टि और श्रीरामादि के जन्म का रहस्य
लेखक - यशपाल आर्य कुछ लोग आक्षेप लगाते हैं कि पुत्रेष्टि से पुत्र कैसे उत्पन्न हो सकता है, यदि नहीं हो सकता तो दशरथ जी को पुत्रेष्टि से पुत्र कैसे प्राप्त हुआ? आज हम इसी पर विचार करेंगे। दशरथ जी के राज्य में कोई दुखी नहीं था सब खुशहाल थे, किन्तु उन्हें इस बात की बहुत चिन्ता थी कि मेरा कोई पुत्र नहीं है। उसके लिए उन्होंने यज्ञ करवाने का निश्चय किया। उसके लिए उन्होंने सुमंत्र के बताए अनुसार ऋष्यश्रृंग को चुना। इस विषय में रामायण के प्रमाण देखें- अब बंगाल संस्करण का पाठ देखें अब बंगाल संस्करण का पाठ देखें अब critical edition का पाठ देखें आगे सुमंत्र के कहने पर महाराज दशरथ ऋष्यश्रृंग को ले आते हैं। गंभीरता व तर्क के साथ अध्ययन करने वाले पाठक को यहां एक थोड़ी अटपटी सी लगती है कि पुत्र प्राप्ति के लिए वाजिमेध यज्ञ कैसे किया जा सकता है, दोनों यज्ञों में कोई अंगोपाङ्ग संबंध नहीं है और दोनों यज्ञ स्वतंत्र हैं। पुत्रेष्टि यज्ञ पुत्र प्राप्ति के लिए तो वही अश्वमेध यज्ञ राष्ट्र को एकीकृत करने हेतु किया जाता है। वस्तुतः यहां वाजिमेध शब्द है, और इसके अर्थ को समझा नहीं गया, जिसके कारण बीच में अश्वमेध