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Showing posts from August, 2022

क्या कुंताप सूक्त को ऋषि दयानंद ने मिलावट कहा?

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लेखक - राज आर्य व यशपाल आर्य अथर्ववेद के 20वें काण्ड के सूक्त 127 से 136 सूक्त पर्यन्त 10 सूक्तों को कुंताप सूक्त कहा जाता है। इन सूक्तों के ऊपर हम आज विचार करेंगे। सर्वप्रथम हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि चारों वेद सृष्टि के आदि में ४ ऋषियों को प्राप्त होते हैं तथा वेद ही सब सत्य विद्याओं का ग्रंथ हैं इसी मत को प्रतिपादित करते हुए ऋषि दयानंद इस्लाम मत की समीक्षा जो लिखते हैं - “और जो बाइबल इञ्जील आदि पर विश्वास करना योग्य है तो मुसलमान इञ्जील आदि पर ईमान जैसा कुरान पर है वैसा क्यों नहीं लाते? और जो लाते हैं तो कुरान १ का होना किसलिये? जो कहें कि कुरान में अधिक बातें हैं तो पहली किताब में लिखना खुदा भूल गया होगा! और जो नहीं भूला तो कुरान का बनाना निष्प्रयोजन है। और हम देखते हैं तो बाइबल और कुरान की बातें कोई-कोई न मिलती होंगी नहीं तो सब मिलती हैं। एक ही पुस्तक जैसा कि वेद है क्यों न बनाया?” तथा इसी प्रकार अन्यत्र देखें- “जो मूसा को किताब दी थी तो पुनः कुरान का देना क्या आवश्यक था? क्योंकि जो भलाई बुराई करने न करने का उपदेश सर्वत्र एक सा हो तो पुनः भिन्न-भिन्न पुस्तक करने से पुनरुक्त द

यजुर्वेद में बकरे के दूध का भ्रान्ति निवारण

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लेखक - यशपाल आर्य  कुछ लोग ऐसा दावा करते हैं कि महर्षि दयानंद जी ने वेद भाष्य में लिखा है कि बकरे का दूध पियो। हम इस लेख में इसी आक्षेप का निवारण करेंगे। किंतु सर्वप्रथम हम यह स्पष्ट कर दें कि महर्षि का केवल संस्कृत भाष्य ही है, भाषा भाष्य ऋषि का नहीं है। भाषानुवाद पंडितों का है। हम अपनी बात को पुष्ट करने हेतु कुछ प्रमाण उद्धृत करते हैं- महर्षि दयानन्द का जीवन चरित भाग 2 [लेखक - देवेंद्र नाथ जी मुखोपाध्याय] जीवनचरित महर्षि स्वामी दयायन्द सरस्वती [लेखक - पण्डित लेखराम जी] अतः हम महर्षि दयानन्द कृत संस्कृत भाष्य पर ही विचार करेंगे। आप इस मंत्र के ऋषि के भाष्य को देखेंगे तो ऋषि समयाभाव के कारण छागस्य पद का अर्थ किए बिना ही छोड़ कर आगे बढ़ गए क्योंकि उन्होंने पहले ही इस पद का अर्थ किया था इसलिए उन्हें लगा कि भाषानुवाद करने वाले पंडित इसका भाषार्थ में सही अर्थ कर देंगे किन्तु उन लोगों ने अर्थ का अनर्थ कर दिया। इसका सही अर्थ जानने हेतु हम सर्वप्रथम छाग शब्द का वेद भाष्य में महर्षि दयानंद जी द्वारा किए हुए कुछ अर्थ उद्धृत करते हैं- १. छागस्य = अजादेः (यजुर्वेद २१.४१) २. छागेन = अजादिदुग्धेन (