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Showing posts from December, 2021

ऋषियों के अनुसार ब्रह्माण्ड की मूल अवस्था

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लेखक - यशपाल आर्य क्या आप जानते हैं कि ब्रह्माण्ड की मूल अवस्था को पूरी तरह जाना नहीं जा सकता, किंतु मनुष्य जितना जान सकता है वह ईश्वरीय ज्ञान वेदों में बताया है तथा हमारे ऋषियों ने भी वेद से समझ कर समाधिस्थ हो कर वेद के वचन को विस्तृत रूप से जान कर बताया है, उस अवस्था का नाम प्रकृति है। आज जो मॉडर्न साइंस जानने की बात करता है वह केवल कल्पना मात्र ही करता है, उन कल्पनाओं की समीक्षा आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक जी ने वेद विज्ञान आलोक में किया है, जो महानुभाव इस विषय में जानना चाहें तो वेद विज्ञान आलोक का अध्ययन अवश्य करें वा आचार्य जी की वेद विज्ञान आलोक कक्षाओं की वीडियो देखें। यद्यपि "ब्रह्मांड की मूल अवस्था क्या है" इस विषय पर वेदों में बताया है तथा अनेक ऋषियों ने भी बताया है तथापि हम यहां केवल दो महापुरुषों के कथनों पर विचार करेंगे। एक हैं चारों वेदों के प्रथम ज्ञाता महर्षि भगवान् ब्रह्मा जी तथा दूसरे महर्षि भगवान् महादेव शिव जी। आज इनके ग्रंथ उपलब्ध नहीं होते, किंतु इनके कथन को उद्धृत कर के भीष्म जी ने शरशैय्या पर पड़े हुए युधिष्ठिर जी को उपदेश दिया था, इस कारण आज भी हमें प्र

प्राचीन भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी। Ancient Indian Science And Technology

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लेखक - शिवांश आर्य प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा तकनीक को जानने के लिये प्राचीन साहित्य और पुरातत्व का सहारा लेना पड़ता है। प्राचीन भारत का साहित्य अत्यन्त विपुल एवं विविधता सम्पन्न है।इसमें धर्म, दर्शन, भाषा, शिक्षा आदि केअतिरिक्त गणित, ज्योतिष, सैन्यविज्ञान, आयुर्वेद, रसायन, धातुकर्म, आदि भी वर्ण्यविषय रहे हैं। समस्त ज्ञान-विज्ञान का मूल स्तोत्र वेद हैं। वेद परमात्मा द्वारा दिया वो ज्ञान है जो मानव की सामर्थ्य व दृष्टि से परिपूर्ण है। प्राचीन ऋषियों ने अपने योगबल प्रज्ञा से वेद के गम्भीर अर्थों को समझ कर वैज्ञानिक प्रतिभा विकसित जी जिसके आधार पर विभिन्न तकनीके व यंत्रों का निर्माण प्राणी मात्र के हित की दृष्टि से हुआ।  मध्यकाल में भारत पर आक्रांताओं द्वारा आक्रमण हुए। गुरूकुलों व विश्वविद्यालय जला दिए गए। संस्कृति के केंद्र मंदिर व भवन नष्ट कर दिए गए। हजारों प्राचीन पुस्तकें जिनमें आध्यात्म विज्ञान व पदार्थ विज्ञान था उनको भी नष्ट कर दिया गया। किन्तु वर्तमान में आज भी हमें  350 से अधिक विज्ञान व प्रौद्योगिकी के ग्रन्थ मिलते हैं। जो भी लोग यह कहते कि भारत में ज्ञान-विज्ञान नहीं था भारतीय

क्या शांता भगवान राम की बहन थीं?

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लेखक - यशपाल आर्य कुछ लोगों को ऐसी भ्रान्ति है कि शांता महाराज दशरथ की पुत्री थीं, फिर उन्होंने रोमपाद को दे दिया। आज हम इस कथा की सच्चाई जानने का प्रयास करेंगे। तो आइए विषय को प्रारंभ करते हैं - जब महाराज दशरथ पुत्र प्राप्त करने के लिए यज्ञ का विचार करते हैं उस समय सुमंत्र उन्हें ऋष्यशृंग की कथा सुनाते हैं। तत्पश्चात महाराज दशरथ उनके पास जाते हैं। इस प्रसंग में शांता के विषय में आता है। सर्वप्रथम राजा दशरथ व सुमंत्र का इस विषय से संबंधित संवाद देखें- अब पश्चिमोत्तर संस्करण से देखें- ऐसे ही विभिन्न संस्कारणों में यह कथा थोड़े पाठभेद के साथ आई है किन्तु सबका भाव एक सा है। अब हम इसकी संक्षिप्त समीक्षा करते हैं - १. बालकांड के नवम सर्ग के प्रथम श्लोक में सुमंत्र यह कथा सुनाने जाते हैं और कहते हैं कि इस कथा का वर्णन पुराण में भी है। इससे सिद्ध होता है कि यह कथा मध्य काल में पुराणों के रचने के बाद मिलाई गई है। क्योंकि पुराणों को गंभीरता से पढ़ने पर पता चलता है कि ऐसी बातें कोई ऋषि नहीं लिख सकता। पुराणों के लेखक व्यास जी माने जाते हैं, यद्यपि यह बात भिन्न है कि व्यास जी ने नहीं लिखा, जब व्या