कौन कहता है पुनर्जन्म मिथ्या है
लेखक - यशपाल आर्य आपने अक्सर कुछ लोगों को कहते सुना होगा कि वैदिक लोगों लो प्रारंभ में मृत्यु के बाद के विषय में जानकारी नही थी या कुछ लोग कहते हैं कि पुनर्जन्म गलत है, आदि आदि, इस पोस्ट में हम दोनों दावों कि समीक्षा करते हैं और सत्य जानने का प्रयत्न करते हैं तो आइये विषय को प्रारंभ करते हैं सर्वप्रथम हम तर्क से तर्क से जानने का प्रयास करते हैं कि क्या पुनर्जन्म संभव है ऋग्वेद १|१६४|२०, श्वेताश्वतर उपनिषद् ४|५ का प्रमाण है कि ईश्वर, जीव तथा प्रकृति तीनों नित्य हैं द्वा सु॑प॒र्णा स॒युजा॒ सखा॑या समा॒नं वृ॒क्षं परि॑ षस्वजाते। तयो॑र॒न्यः पिप्प॑लं स्वा॒द्वत्त्यन॑श्नन्न॒न्यो अ॒भि चा॑कशीति ॥ ऋग्वेद १|१६४|२० अन्वय: हे मनुष्या यौ सुपर्णा सयुजा सखाया द्वा जीवेशौ समानं वृक्षं परिषस्वजाते तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्ति। अन्योऽनश्नन्नभिचाकशीतीति यूयं वित्त॥ पदार्थान्वयभाषाः - (द्वा) द्वौ। अत्र सर्वत्र सुपां सुलुगित्याकारादेशः। (सुपर्णा) शोभनानि पर्णानि गमनागमनादीनि कर्म्माणि वा ययोस्तौ (सयुजा) यौ समानसम्बन्धौ व्याप्यव्यापकभावेन सहैव युक्तौ वा तौ (सखाया) मित्रवद्वर्त्तमानौ (समानम्) एकम् (वृक्षम्) यो