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भगवान् राम के शिकारी होने की समीक्षा

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लेखक - यशपाल आर्य कुछ लोग भगवान् राम पर यह आक्षेप लगाते हैं कि वे शिकार खेलते थे, आज हम इसी बात पर विचार करने वाले हैं और देखेंगे कि उनकी बात में कितनी सत्यता है। यह आक्षेप मुख्य रूप से मारीच वध प्रसंग पर लगाया जाता है। मारीच वध प्रसंग में जब सीता जी स्वर्ण मृग दिखाती हैं और उसे जीवित पकड़ने के लिए बोलती हैं। आज की उपलब्ध वाल्मीकि रामायण में ऐसा आया है कि उसे जीवित न पकड़ पाने की स्थिति में ही मारकर लाने की बात कही गई है और उसका हेतु यह दिया है कि सीताजी उसकी चमड़ी से आसन बनाना चाहती थीं। अब जरा विचारें यदि उन्हें चर्म के आसन एवं बिस्तर से ही प्रीति होती, तो वे स्थान-स्थान पर पर्ण, घास, पुष्पों की शय्यायें नहीं बनाते। क्या उन्हें जंगल में कहीं कोई सुन्दर जानवर मिले ही नहीं थे? इतने सुन्दर नहीं भी मिले हों, तो भी जंगल में अनेक सुन्दर हिरण, बाघ, चीता आदि सुन्दर चमड़ी वाले जानवर मिले ही होंगे। तब क्यों नहीं उनकी चमड़ी के लिये किसी को मारा? श्रीरामजी ने कई स्थानों पर लक्ष्मणजी से फूल, घास, लकड़ी, पत्ते लाकर बिस्तर बनाने का आदेश दिया है। क्यों नहीं किसी जानवर को मारकर चमड़ा लाने का आदेश दिया? इसस